उन्होंने सुषमा को एक फूल की तरह अपन बाँहों में उठा लिया और जैसे मैंने सुषमा को चोदा था उसी तरह पर शायद मेरे से और जोश के साथ वह सुषमा को चोदने लगे। सुषमा भी साले साहब के तगड़े लण्ड को पहली बार अपनी चूत में ले रही थी।
साले साहब का लण्ड का आकार कुछ अलग ही था। लंबा और मोटा होने के अलावा वह थोड़ा सा मुड़ा हुआ ऊपर छत की तरफ अपने टोपे को किये हुए बड़ा ही कामुक दिख रहा था। उनका लण्ड उनके पूर्व रस की चिकनाहट से लथपथ चमक रहा था।
उस चिकने चमकते लण्ड को सुषमा की चूत में दाखील होते हुए और निकलते हुए देखना एक बड़ा ही अद्भुत एहसास था जो मैंने इसके पहले कभी अनुभव नहीं किया था। साले साहब ने भी सुषमा की काफी अच्छी खासी चुदाई की।
जैसे ही साले साहब सुषमा की चूत में अपने लण्ड को एक तगड़ा धक्का मार कर घुसाते, सुषमा कराह कर “आह…..” कर उठती। जब साले साहब अपना लण्ड तेजी से अंदर बाहर करने लगते, सुषमा भी उनके लण्ड की तेज फुर्ती भरी रफ़्तार से मैच करती हुई “आह….. ओह….. ” बोलती हुई कामुक सिसकारियां भरने लगती। साले साहब से सुषमा की चुदाई का वह कामुक दृश्य अद्भुत रोमांचक और रोंगटे खड़ा कर देने वाला था।
मैंने उस रात एम.एम.एफ. चुदाई का वह रोमांचक अनुभव किया जो मैंने पहले कभी नहीं किया था। मुझे एम.एम.एफ. चुदाई स्त्रियों के लिए कितनी रोमांचक होती होगी यह भी समझ में आने लगा। जब एक मर्द एक औरत को चोदता है तो मर्द चुदाई में मशगूल और उत्तेजना से भरा होने के कारण उसका लगभग पूरा ध्यान अपने लण्ड और अपनी साथीदार की चूत के बिच में हो रहे घमासान पर ही होता है।
वह उस समय अक्सर औरत के सारे अंगों को न्याय नहीं दे सकता। चुदाई में लीन औरत उसी समय चाहती है की उसे चोदते हुए उसका मर्द साथीदार उसकी चूँचियाँ खूब चूसे और मसले। औरत की बड़ी इच्छा होती है की उसका एक एकअंग जैसे की उसकी गाँड़, उसके होंठ उसका मर्द साथीदार चूमे, चाटे और काटे। यह सब एक साधारण मर्द एक साथ नहीं कर सकता।
दूसरे यह की औरत चाहती है की मर्द उसकी चुदाई लम्बे समय तक करे। पर किसी वैज्ञानिक ने कहा है की एक साधारण मर्द औरत को ज्यादा से ज्यादा सात मिनट तक चोद सकता है। एक औरत को सात मिनट सख्ती से चोदने के बाद वह झड़ जाता है और थक भी जाता है। झड़ने के बाद मर्द में वह शक्ति नहीं रहती की वह औरत को थोड़ी देर तक विश्राम किये बिना चोद सके। साधारणतः मर्द का मन ही भर जाता है और वह बिस्तरे में ही थक कर ढेर हो कर लेट जाता है और अक्सर सो ही जाता है।
इसके विपरीत, एक साधारण औरत मर्द की सख्त चुदाई से कई बार झड़ने पर भी और चुदाई के लिए आतुर रहती है और आसानी से थकती नहीं। कई बार तो मर्द की चुदाई करने के अज्ञान या अनाड़ीपन के कारण औरत को चुदाई के दरम्यान संतुष्टि नहीं होती। वह उतनी उत्तेजित नहीं हो पाती की वह झड़े।
अगर मर्द औरत को नापसंद हो या फिर औरत उस मर्द से उकता गयी हो (जैसे की सालों से चुदने के बाद अक्सर एक औरत अपने पति से उकता जाती है) तो भी औरत को उस चुदाई में आनंद नहीं आता बल्कि वह उसे शारीरक मजदूरी या मजबूरी समझ कर झेल तो लेती है पर झड़ नहीं पाती।
पर जब दो मर्द एक औरत की एम.एम.एफ. वाली चुदाई करते हैं तो फिर औरत की चुदाई भी लम्बे समय तक चलती रहती है, औरत को मर्द को खुश करने के लिए दो लंडों को सम्हालना पड़ता है।
दोनों मर्द बारी बारी से एक औरत को चोदते रहने के कारण मर्दों को तो आराम मिल जाता है पर औरत उस दरम्यान बड़ी ही व्यस्त रहती है और तीसरी बात यह की अगर दो मर्द औरत के आगे और पीछे (मतलब चूत और गाँड़) दोनों छिद्रों में अपना लण्ड एक साथ डालकर उसकी तगड़ी चुदाई करें (जिसे डी.पी. मतलब ड्युअल पेनिट्रेशन अथवा दोनों छिद्रों में एक साथ प्रवेश करना कहते हैं) तब तो औरत त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगती है, हालांकि उसकी तगड़ी चुदाई करवाने की इच्छा तब पूरी तरह फलीभूत होती है।
और सबसे बड़ी बात यह की ऐसी चुदाई कभी कभी ही हो पाती है। इस के कारण औरत और मर्द दोनों चुदाई के पहले, दरम्यान और बाद में भी उत्सुक, उत्तेजक और रोमांचित रहते हैं।
दो बार मेरे और साले साहब से चुदने के बाद सुषमा भी थकी हुई नजर आ रही थी। शायद साले साहब ने उसे महसूस किया और सुषमा की चुदाई रोक कर धीरे से सुषमा को निचे उतारा। निचे उतरते ही सुषमा वापस पलंग पर जा कर कुछ देर लेट गयी। मैं और साले साहब सुषमा के पास बैठ गए।
सुषमा ने थोड़ी सी पलके खोलीं, हमें देखा और हमें देख मंद मंद मुस्करायी और फिर आँखें बंद कर लेट गयी। मैं यह देखा कर बड़ा ही प्रभावित हुआ की साले साहब घर के काम में भी काफी माहिर लग रहे थे, क्यूंकि वह सुषमा के लेट जाने के बाद रसोई घर में गए और थोड़ी ही देर में हम तीनों के लिए गरमागरम चाय बना कर ले आये।
चाय की पियालियों की खटखटाहट सुनने पर सुषमा ने धीरे से आँखें खोलीं और अपने सामने चाय का कप रखते हुए साले साहब को देख कर वह सानंदाश्चर्य मुस्कुरायी और बड़ी ही नजाकत भरी अदा से बोली, “अंजू वाकई बड़ी ही तक़दीर वाली है की उसे आप जैसे पति मिले। आप यहां हमारे लिए चाय बना कर ले आये यह दिखाता है की आप अपनी पत्नी के लिए भी कितने संवेदनशील होंगे। भगवान सब पत्नियों को आप जैसा पति दे।”
सुषमा की इन कमसिन अदाओं और मधुर बातों से साले साहब और मैं हम दोनों का सुषमाजी के प्रति लगाव और प्यार पल दर पल बढ़ता ही जा रहा था। हालांकि हम भी थके हुए थे, पर हमारा मन सुषमा की चुदाई करने से भरा नहीं था। कई औरतों में यह काबिलियत होती है की वह अपनी नज़ाकत भरी अदाओं, मीठी बातों और मधुर स्मित से मर्दों का दिल लम्बे समय तक या कई बार जिंदगी भर अपने वश में रख पाती हैं। वाकई में सेठी साहब भी बड़े ही भाग्यशाली थे की उनको भी सुषमा जैसी पत्नी मिली थी।
चाय पीते हुए मैं और साले साहब सुषमा के इर्दगिर्द बैठ कर कभी उसकी चूँचियों तो कभी उसकी गाँड़ तो कभी उसके काले, घने घुंघराले केश के साथ खेल रहे थे जिससे सुषमा बड़ा ही एन्जॉय कर रही थी। सुषमा भी चाय की चुस्कियां लेते हुए बिच बिच में हमारे ढीले सोये हुए लण्ड को सेहला कर तो कभी कुछ फुर्ती से हिलाकर उन्हें जगाने की कोशिश कर रही थी।
सुषमा के हाथ के जादुई स्पर्श से हमारे लण्ड भी सख्त होने लगे थे। चाय ख़त्म करने के बाद सुषमा ने झुक कर पहले मेरा लण्ड मुंह में लिया और एक हाथ से हिलाते हुए वह उसे चाटने लगी। दूसरे हाथ से वह साले साहब का लण्ड हिला रही थी उनके लण्ड की त्वचा को पकड़ कर उसे ऊपर निचे कर रही थी।
धीरे धीरे सुषमा ने हमारे लण्ड को एक के बाद एक चूस कर और अपना मुंह बारी बारी हम दोनों के लण्ड से सांकेतिक रूप से चुदवा कर उन्हें एकदम सख्त तैयार कर दिया। कुछ देर बाद सुषमा ने पहले मेरी और और बाद में साले साहब की और शरारत भरी बड़ी ही मादक नज़रों से देखा। सुषमा की आँखों के मटकाव और कामुक भरे अंदाज़ से मैं समझ गया की सुषमा तब तक पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुई थी। वह और ज्यादा चुदना चाहती थी।
सुषमा ने मेरी और अपनी नजरों से ही जैसे कुछ कह रही हो ऐसे देखा। मैं सुषमा के भाव शायद अच्छी तरह समझ नहीं पाया तब सुषमा ने शायद मजबूरी में (शायद सुषमा चाहती थी की उसे पहल न करनी पड़े। मैं ही उसके दिल के भाव समझूँ और पहल करूँ। पर मेरे नहीं समझ पाने के कारण सुषमा ने पहल की, और) मुझे पलंग पर लिटा दिया और खुद मुझ पर चढ़ गयी।
सुषमा अपनी चूत बार बार मेरे लण्ड से रगड़ने लगी। फिर धीरे से आगे पीछे होते हुए सुषमा ने मेरे लण्ड को अपनी पंखुड़ियों को हटा कर बिच में रख कर अपनी चूत की सुरंग में घुसने की इजाजत देदी।
मेरे साले साहब मेरे जितने अनाड़ी नहीं थे। जब उन्होंने देखा की सुषमा की आज्ञा से मैं सुषमा के निचे सोया था और सुषमा मेरे ऊपर चढ़ कर ऊपर सवारी करते हुए मुझे चोदने लगी थी तो वह सुषमा को शरारत भरी आँख मार कर मुस्कराये और जैसे जैसे सुषमा मेरे ऊपर सवार मुझे चोदने लगी तो धीरे से सुषमा के पीछे जा कर मेरी एक टांग को अपनी दोनों टांगों के बिच में रखते हुए अपने घुटनों को हल्का सा टेढ़ा कर घुटनों के बल पर ही आधे खड़े हुए।
सुषमा ने पीछे मुड़कर साले साहब की और देखा और मुस्कुरायी। सुषमा की आँखों में साले साहब की समझ जाने की क्षमता के कारण एक तरह का आत्मसंतोष झलक रहा था।
सुषमा ने बिना कुछ बोले हल्का सा मुस्कुरा कर और शायद कुछ घबराते हुए साले साहब को अपना सर हिलाते हुए इजाजत दे दी। जब साले साहब ने अपने लण्ड पर अपने मुंह से लार टपका कर उसे और चिकना किया तब सुषमा ने अपने हाथ लंबा कर साथ में मेज पर रखी हुई एक तेल की बोतल साले साहब के हाथों में थमाई।
तब कहीं जा कर मेरे दिमाग की ट्यूब लाइट जली। मैं तब समझा की सुषमा हम दोनों से एक ही साथ चुदना चाहती थी। मतलब वह चाहती थी की मैं उसकी चूत चोदूँ और साले साहब उसी समय उसकी गाँड़ मारे। सुषमा एक साथ मेरे और साले साहब का लण्ड अपने अंदर डलवा कर दोनों छिद्रों में चुदना चाहती थी।