हेलो दोस्तों आपका इस प्लेटफॉर्म में स्वागत हैं, आशा करती हूं की आप सब खैरियत से होंगे, मेरा नाम पूजा हैं और मैं अपनी पिछली पोस्ट की गई कहानी का नया भाग ले कर आ गई हूं।
(बाप बेटी की मीठी और सेक्सी कहानी 2)
जैसा की अब तक तक आपने ने पढ़ा कि मम्मी के गुजर जाने के बाद से पापा ही मेरा ध्यान रखते आए थें, सारी जरूरतें का ख्याल रखते थें, इसलिए मैं अपने पापा पर सबसे ज्यादा यकीन करती थीं, हालंकि मेरे कई रिश्तेदार भी थें पर उनका आना जाना कभी कभार होता था, और दो या तीन दिन से ज्यादा कोई नहीं ठहरता था, सब अपने काम में मशरूफ रहते थें इसलिए ऐसा करना लाज़मी था।
दूसरी तरफ़ मेरे पापा भी अब अपना ज्यादा वक्त काम में लगा देते थें, बस रात के समय खाने पर ही अच्छे से बातें हो जाती थीं या फिर छुट्टियां के वक्त, सुबह नाश्ते के वक्त भी इतनी नहीं हो पाती थीं, वो अपने ही काम के सिलसिले में कभी लैपटॉप पर मशगूल होते या न्यूज देखते या स्पोर्ट्स में ध्यान लगा देते थें, जिसका मुझे इल्म भी बहुत होता था, और वजह तोह मुझे पता ही थीं…. (मम्मी) और उनका दर्द शायद ही कोई कम कर पता।
अलबत्ता! उस दिन नाश्ते के दौरान जब पापा ने मुझे किस किया था तोह मेरा पूरा जिस्म इस क़दर मचल उठा था कि मैं क्या ही बताऊं, भले पापा ने वो लाड़ से किया होगा, पर मुझे बहुत ही अजीब सा महसूस हुआ था, और बुरे ख्याल पनपने लगे थें,
ऐसा नहीं था की पापा ने मुझे कभी किस नहीं किया था पर उस दिन की बात बहुत अलग सी थीं क्यूंकि मैंने पोर्न वीडियो तो पहले ही दोस्त के घर देख रखा था, अब एक 15 साल की लड़की जो अपनी जवानी की दहलीज़ पर आ पहुंची हो, उसे ऐसा महसूस होना कोई बुरी बात नहीं थीं, जो मेरे साथ बखूबी हो रहा था।
मेरे अंदर बहुत सारे शरारिक बदलाव आने लगे थें, जिस्म गदरा रहा था, जांघों पर मांस बढ़ रहीं थीं, कमर और गांड़ की चौड़ाई भी हल्की फैल रहीं थीं, चूचियां पूरे 30 इंच के हो चुके थें, गोल और बिल्कुल तने हुए और गाढ़े भूरे निप्पल इतने खड़े और उभार आए थें, कि मैं कोई भी कपड़े पहन लूं ऊपर से ही नज़र आते थें, उस वक्त मैं प्रॉपर ब्रा नहीं पहनी थीं, बस स्पोर्ट्स ब्रा ही पहनती थीं, और वो भी पापा ही ला कर देते थे, तेरह की उम्र के बाद से चूचियां थोड़ी बड़ी होने लगी थीं, तब तक मैं स्पैगिटी ही पहन लेती थीं, फिर धीरे धीरे स्पोर्ट्स ब्रा में उतर आई थीं।
लेकिन जब मैंने अपनी दोस्तों को ब्रा खरीदते हुए देखा था तब मेरे अंदर भी अलग सी ख्वाइश जगी कि मैं भी ब्रा पहनूं और मैं अपनी स्कूल फ्रेंड (मुस्कान) के साथ स्कूल की छुट्टी होने के दौरान बाजार गई और अच्छी अच्छी ब्रा खरीद ली, कुछ पेडेड और कुछ नेट के, पैसे तो पापा देते ही थें, मैंने कुछ स्लीवलेस नाइट ड्रेस भी खरीद लिया, वैसे तो मैं घर पर टॉप और पैजामे, या स्कर्ट, फ्रॉक पहन लेती थीं, अब मेरी ख्वाहिशों की सीढ़ी कुछ ज्यादा ही चढने लगी थीं तो इसमें मैं कुछ नहीं कर सकती।
जब मैं मार्केट से घर पर पहुंची तो अकेले ही थीं, क्योंकि पापा ने तोह बता ही दिया था कि वो देर से आएंगे अब मुझे अकेले तन्हा बेहद बोर लग रहा था, मैं स्कूल बैग को एक तरफ फेक कर अड़ा तिरछा हो कर सोफे पर पसार गई, टीवी का रिमोट कंट्रोल टेबल पर मौजूद था, तो टीवी ऑन कर दिया और अलग अलग चैनल बदलती रहीं पर कुछ मेज की चीज नहीं मिली, मैंने गुस्से में रिमोट को पटकते हुए बंद कर दिया।
फिर मेरे ज़ेहन में कुछ ठनका और मैंने तुरंत बैग से पैकेट निकाला और सारे ब्रा टेबल पर फैला दिया, एक एक ब्रा को खोल कर देखने लगी फिर सोचा क्यों न ट्राई कर लूं, और अब मन तो तड़पने लगा था, ज्यादा देर न करते हुए मैंने अपना शर्ट खोला और एक नेट की ब्रा पहन ली, काफ़ी खूबसूरत और आकर्षक नज़र आ रहा था उसका मेरा गोरा दूध, भूरे निप्पल तो ऐसे लग रहें थें जैसे वो कोई किशमिश हो, मैंने निपल्स पर उंगलियों को फेरना शुरु कर दिया, और जो महसूस हुआ मुझे दोस्तो क्या ही बताऊं ! पूरे जिस्म में अजीब सी गर्मी की लहर बढ़ गई,
निपल्स जो पहले से खड़े थें वो और खड़े हो गए और अब मेरी छूत में कुछ हलचल सी होने लगी, दाने पर करेंट जैसा दौड़ने लगा, मैं बहुत ही अलग सा महसूस करने लगी, देखते ही देखते मैंने अपने दोनों हाथों से गोरे और मोटे मोटे तने हुए चूचियां इस क़दर दबाने लगी कि आंखें बेखयाली में बंद हो गई और मुंह से सिसकियां निकलने लगी इ श श श आह आह आह आह उफ्फ उफ्फ की शोर उस शांत हॉल रूम में गूंज उठी….
छूत तड़पने लगा लन्ड की चाहत में पर वो चाहत तो अधूरी ही रही मेरी, कुछ तो करना था प्यास को बुझने के लिए तो, एक हांथ मैंने नीचे किया और पैंटी के अंदर डाल कर दानों पर रगड़ने लगी, पूरा चिपचिपा हो गया, पर प्यास नहीं बुझी और लन्ड की चाहत बढ़ने लगी, मैंने मिडल फिंगर छूत में डाल कर हल्के हल्के सहलाने और अंदर बाहर करने लगी, इतनी हिम्मत नहीं थीं मुझमें कि मैं पूरी डालती, डर था कहीं कुछ उल्टा पुल्टा हो न जाए, बहुत सारा पानी छोड़ा मेरी छूत ने, पर वो तड़प जो लन्ड पूरी कर सकता था वो मुकम्मल नहीं हो पाई।
कुछ लम्हा बाद में कमरे में चली आई, और बाथरूम में जा कर पूरी नंगी हो गई, शीशे दीवार पर टांगी थीं उसमें अक्श देख कर दुबारा चुदाई का मूड बन गया और मैंने छूत को एक हांथ से फांक किया और उंगली घुसा कर बाहर से ही चुदाई करने लगी, मन बावला हो गया था, एक हाथ लगातर मेरे चूची को दबा रहा था, और दूसरा चुदाई का आनंद ले रहा था, आंखे बंद थीं और मुंह उफ्फ उफ्फ आह आह आह ह ह ह ह ह ह की गति से आहें भर रहा था।
तभी अचानक से मेरी आंखें खुली और कान तैनत हो गए, ये पापा की आवाज़ थीं शायद वो घर पहुंच चुके थें। दरवाज़ा इस बार भी बंद करना भूल गई थीं, और जिस हालत में मैं अभी थीं अगर पापा देख लेते तो पता नहीं क्या बिजिलियां गिर जाती। एक बार फिर पूजा पूजा पूजा कहां हो बेटा! कानों में गूंजने लगा। अब मैं क्या ही करती कपड़े थें नहीं की जिस्म पर लपेट कर बाहर आती,
मैंने हड़बड़ाते हुए एकाएक जवाब दिया ” मैं मैं बाथरूम में हूं पापा”
लेकिन पापा तब तक मेरे कमरे में आ धमके थें, बाथरूम का दरवाजा पूरा खुला था जैसे दावत दे रहा हो, अब मेरी हालत खराब होने लगी, मैं तुरंत दरवाजे के पीछे छुप गई और हल्के से दबी आवाज़ में कहा”मैं अंदर हूं पापा”
पापा समझ गए और उन्होंने वही ठहर कर प्यार से कहा”पूजा मैं तुम्हारे लिए कुछ लाया हूं जल्दी बाहर आओ”
मेरे सर पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा अब क्या ही करती, एक टॉवेल भी मौजूद नहीं था हैंगर में, मैंने हल्के शर्मिंदगी वाली अंदाज़ में कहा”पापा क्या आप मेरे कपड़े ला देंगे मैं जल्दबाजी में लाना भूल गई??”
पापा ने भी इसका कोई विरोध नहीं किया और वो हम्मम कहते हुए अलमीरा के ओर बढ़ गए और कुछ ही पलों बाद उन्होंने दरवाजे से मुझे आवाज लगाया”पूजा अपने कपड़े पकड़ लो”, मैंने भी उनके हाथों से कपड़ा ले लिया और झट पट पहन ली, फिर आहिस्ता से बाहर निकल आई।
पापा ने पहले तो मुझ पर ध्यान नहीं दिया था, लेकिन जैसे जैसे मैं करीब आने लगी तो अंजाने तौर पर मुझे उनकी तपिश महसूस हुई, मेरा पूरा मखमली जिस्म मचल उठा, अंदर से गुदगुदी सी होने लगी और थोड़ी शर्म भी, क्योंकि टॉप थोड़ी कसी हुई थीं जिससे मेरी मोटी चूची (बूब्स)उभर कर नजर आ रहीं थीं साथ ही निपल्स भी बची कुची कसर अदा कर रहीं थीं, जो किसी भी मर्द को एक झलक में पागल कर सकती थीं।
मेरा जिस्म नहाने की वजह से तरो ताजा हो गया था, गोरी त्वचा पर पानी की टपकती बूंदे ऐसे लग रहीं थीं मानो मोतियां गिर रहीं हो, और बदन से उठती वो भीनी भीनी खुशबू कमरा को सुगंधित कर रहीं थीं। मैंने नज़र उठा कर देखा तोह पापा मुझे ही देख रहें थें, जैसे ही हमारी आंखें एक दूसरे से भिड़ी वो थोड़े सटपटा गए और जल्दी से अपनी नजरें फेर कर हकलाते हुए कहा” वो वो मैं तुम्हारी फेवरेट आइस क्रीम लाया हूं, खा लेना वरना पिघल जाएगी” इतना कह कर वो तेजी से कमरे से निकल गए।
मैं बंद हो चुकी दरवाजे को घूरने लगी, पता नहीं पापा को कैसा महसूस हुआ होगा अपनी जवान होती हुई बेटी की जिस्म को देख कर, मैं सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगा सकती हूं, मुझे एक अजीब सी बेचैनी ने घेर लिया।
कुछ देर बाद मैं बेड पर लेट गई, नींद तो वैसे भी उड़ चुकी थीं, इसलिए करवट बदल बदल सोचने लगी, की पापा की नजरें मेरी खड़ी चूची और निपल्स पर जरूर गई होगी, तब ही तो वो ज्यादा कुछ बोले कमरे से चले गए। मैंने बहुत सोचा,
और अचानक से मेरी दोस्त मुस्कान की बातें याद आई कि वो पोर्न वीडियो देख कर उंगलियां करती थीं और कभी कभी अपने चाचा की लन्ड भी चोरी छिपे बाथरूम से झांक कर देख लेती थीं जब भी वो नहाने जाते थें।
मुस्कान ने एक बार बताया था कि उसके चाचा जवान थे और बदन भी कसा हुआ था बिल्कुल एक एथलीट की तरह और लन्ड तो पूरा मोटा और कुछ 6 इंच लंबा था, उसने कभी चुदाई नहीं की थीं पर उसकी इच्छा जरूर करती की एक बार वो चाचा से चुद जाए किसी बहाने।
अब तो मेरे जिस्म में सिरहन सी दौड़ गई, चुदाई के लिए मेरी चूत बेकरार होने लगी, जिस्म गर्म होने लगा और मैं अपने कमरे से बाहर निकल आई। पापा का कमरा फर्स्ट फ्लोर पर था मैं सीढ़ियों से भागती हुई उनके कमरे के बाहर आ रूकी, दरवाजा के हैंडल पर हांथ रख कर खोलने लगी तो दरवाजा अंदर से बंद नहीं था,
मैं आहिस्ता से अंदर दाखिल हो गई और देखा तो पापा अपने बिस्तर पर नहीं थें, मुझे लगा वो कमरे में आए नहीं होंगे शायद छत या अपने बालकनी में होंगे, मैं वापस जाने के लिए मुड़ी पर, मेरे पैर आगे नहीं बढ़े क्यूंकि एक अजीब से आवाज़ें आने लगी थीं, अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह्ह अह्ह्ह्हह अह्ह्ह्ह्ह्ह…..
मैंने गौर से सुना तो ये आवाज बाथरूम से आ रहीं थीं, मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा और सांसे एकाएक भारी, मैंने सोचा एक बार देख लेती हूं, पर वो मेरे पापा थें, मैं बिना इजाज़त के बाथरूम में कैसे झांक सकती थीं, पर मेरा जिस्म कुछ और ही जवाब दे रहा था, मैं आहिस्ता से कदम बढ़ा दी, दरवाज़ा पूरी तरह बंद नहीं था, मैंने कांपती हाथों से हल्का सा दरवाजा खोल कर देखा, तो आंखें स्तब्ध रह गई।
आगे की कहानी अब अगले भाग में….