पड़ोसन बनी दुल्हन-13

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मैंने बैठ कर उनका हाथ पकड़ा और कहा, “अगर आप कंडोम ढूंढ रहें हैं तो मत ढूंढिए। वैसे तो इस वक्त मेरा फर्टिलिटी पीरियड हैं नहीं, पर अगर मुझे आपसे गर्भ रह गया तो मैं आपके बच्चे को जरूर जनम देना चाहूंगी। मैं ना सिर्फ आपकी बीबी बनना चाहती हूँ, मैं आपके बच्चे की माँ भी बनना चाहती हूँ।आज मैं आपके और मेरे बिच में कोई भी आवरण रखना नहीं चाहती चाहे वह गर्भ निरोधक कंडोम का पतला सा आवरण ही क्यों ना हो।“

सेठी साहब कुछ देर तक मेरी और आश्चर्य से एकटक देखते रह गए। वह उस समय उनकी अपने बच्चे की समस्या के बारे में शायद सोच रहे थे। मैंने उनका सर दोनों हाथों में पकड़ कर कहा, “सेठी साहब, अगर हमारे मिलन से कोई बच्चा रह गया, तो मैं उसे जरूर जनम दूंगी और मैं आपसे वादा करती हूँ की मेरे उस बच्चे को अगर आप और सुषमाजी चाहो तो गोद ले सकते हो। हो सकता है वह हमारा बच्चा आपकी और सुषमाजी की जन्दगी फिर से राह पर ला दे।

अगर आप और सुषमाजी चाहोगे तो वह बच्चा आपका होगा और ना मैं और ना ही मेरे पति उस बच्चे पर माँ बाप होने का दावा करेंगे। मैं चाहती हूँ की हमदोनों का यह मिलन ना सिर्फ मेरे और आपके लिए बल्कि आपके और सुषमाजी के लिए भी एक अद्भुत आनंद और वरदान का कारण बने और आप दोनों की जिंदगी में फिर से वही बहार लौट आये।”

सेठी साहब के चेहरे पर मेरी बात सुनकर जो आनद के भाव मैंने देखे उसको मैं कभी नहीं भूल सकती। शायद मेरे और सेठी साहब के मिलन की वह सबसे बड़ी विशिष्टता थी।

मैं ना सिर्फ सेठी साहब को मेरे बदन को सम्भोग और आनंद के लिए अर्पण कर रही थी पर साथ साथ में शायद उनकी वैवाहिक जीवन में फँसी हुई गाँठ को भी सुलझा ने की कोशिश कर रही थी। सेठी साहब के चमक उठे चेहरे से उनकी अपनी मनोदशा का अंदाज मुझे लग सकता था।

सेठी साहब ने झुक कर मेरे होंठों से अपने होंठ मिलाये और मुझे चूमते हुए बोले, “टीना, मेरा तुम पर कोई क़र्ज़ नहीं। बल्की अब मैं तुम्हारा कर्ज़दार बन गया हूँ। मैं तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करता हूँ, बशर्ते की सुषमा भी राजी हो। और मैं जानता हूँ की सुषमा ना सिर्फ राजी होगी, बल्कि यह बात सुनकर झूम उठेगी।“

हालांकि सेठी साहब ने मेरे मना करने पर कंडोम नहीं निकाला पर अपनी सूटकेस में से एक छोटी सी बोतल जरूर निकाली जिसमें शायद कोई जेल या ऐसा ही स्निग्ध पदार्थ होगा। क्यूंकि उन्होंने वह जेल या ऑइंटमेंट या कुछ हद तक तेल जैसा चिकना पदार्थ अपने लण्ड के चारों और अच्छी तरह से लगा कर उस बोतल में अपनी दो उंगलियां डुबो कर निकाल कर उन्होंने मेरी चूत को भी अंदर से काफी अच्छी तरह से चिकनाहट से लथपथ किया। उस अनुभव को याद करते समय आज भी मैं रोमांचित हो जाती हूँ की उनका ऐसा करने से उन्होंने मेरी कितनी यातनाएँ कम कीं।

मेरे बिस्तरे पर नग्न लेटे हुए सेठी साहब ने वह सब कार्यक्रम किया और फिर सेठी साहब आगे बढे और मेरे लेटे हुए बदन को अपनी टाँगों के बिच में रख कर मुझ पर सवार हुए। मैंने अपनी टाँगें ऊपर कर सेठी साहब के कंधे पर रख कर उन्हें अपने लण्ड को मेरी चूत के केंद्र पर रखने के लिए इशारा किया।

सेठी साहब का लण्ड जैसे ही मेरी चूत की सतह को छुआ तो मेरे पुरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ पड़ी। मेरे रोंगटे सेठी साहब के लण्ड के मेरी चूत को छूने से खड़े हो उठे। मैंने मेरे एक हाथ की उँगलियों में सेठी साहब का वह विशाल लगता हुआ लण्ड पकड़ा।

यह लण्ड मेरी चूत में कैसे और कितना घुसेगा यह सोच कर ही मैं कांपने लगी। सेठी साहब के लण्ड को देखते हुए मुझे ऐसा लगता था की मेरी पूरी चूत की नाली को पूरी तरह से अंदर तक भर जाने के बाद भी वह शायद आधा बाहर ही रह पायेगा। पूरा मेरी चूत में जा नहीं पायेगा। मुझे मेरे पति ने ऐसे वीडियो दिखाए थे जिसमें मर्द का लण्ड इतना लंबा होता था की औरत की चूत भर जाने के बाद भी आधा बाहर रह जाता था।

उस समय मुझे सेठी साहब के सामने नंगे अपनी दोनों टांगें सेठी साहब के कंधे पर रखी हुई चुदवाने के लिए तैयार होते हुए भी कोई शर्म का एहसास नहीं हो रहा था। क्यों की मैं अपने मन कर्म और वचन से सेठी साहब को अपना सर्वस्व मान चुकी थी और उन्हें अपना सर्वस्व अर्पण करने के लिए बेताब थी।

मैंने सेठी साहब के मोटे लण्ड को अपनी उँगलियों में मेरी चूत के केंद्र बिंदु पर सेट किया और सेठी साहब ने भी मेरी उँगलियों के पीछे ही अपने लण्ड को अपनी उँगलियों में पकडे हुए थोड़ा सा मेरी चूत की पंखुड़ियों की सतह पर चिकनाहट बढ़ाने के लिए रगड़ते हुए धीरे से अंदर घुसेड़ा।

मैं भली भाँती जानती थी की यह मेरे लिए बड़ी ही नाजुक संकट की घडी थी। सेठी साहब के उस तगड़े लण्ड के दाखिल होने से मेरी चूत की त्वचा के पूरी तरह खींचने और चौड़ा होने की क्रिया में मुझे असह्य दर्द का सामना करना पडेगा। शायद मेरी चूतमें से खून का भी कुछ स्राव हो। पर हर औरत को पहली बार चुदवाते हुए यह दर्द झेलना ही पड़ता है। मैं भी इतने बड़े तगड़े लण्ड से पहली बार ही चुदवा रही थी तो मेरे लिए भी यह दर्द झेलना अनिवार्य था।

सेठी साहब ने अपने लण्ड को मेरी चूत में दाखिल कराने के लिए दिया वह पहला धक्का मैं जिंदगी भर कभी नहीं भूल पाउंगी। वह धक्के के चलते हुए सेठी साहब के उस विशालकाय लण्ड के मेरी चूत में दाखिल होने के कारण मेरी चूत की नाली की त्वचा शायद कहीं ना कहीं से थोड़ी जरूर फट गयी होगी। क्यूंकि लण्ड के मेरी चूत में दाखिल होते ही मेरे पुरे बदन में इतने जबरदस्त दर्द की एक लहर दौड़ उठी की ना चाहते हुए भी मेरे मुंह से तीखी चीख निकल गयी।

मेरी चीख इतनी तेज थी की पास वाले दूसरे कमरे में लेटा हुआ मेरा बच्चा कुछ पल के लिए जाग उठा और रोने लगा। निचे सोये हुए सब लोग मेरी चीख सुन कर भाग कर ऊपर ना आ पहुंचे इस डर से मेरी जान निकल रही थी। मेरी चूत से शायद थोड़ा सा खून रिस रहा होगा, क्यूंकि सेठी साहब ने अपना लण्ड मेरी चूत में ही रखते हुए टेबल पर रखे हुए टिश्यू बॉक्स से एक टिश्यू निकाल कर मेरी चूत की पंखुड़ियों को पोंछा।

अगर सेठी साहब ने कुछ समय पहले जो क्रीम की बोतल में से वह जो चिकनाहट देने वाला पदार्थ अपने लण्ड की सतह पर और मेरी चूत की अंदरूनी दीवारों पर अच्छी तरह से ना लगाया होता तो मैं उस समय जब सेठी साहब का लण्ड मेरी चूत में पहली बार घुसा तो चीख तो निकल ही जाती पर उस भयानक दर्द से शायद मैं बेहोश भी हो जाती।

शायद मेरी चीख हमारे कमरे के बंद दरवाजे के बाहर नहीं गयी। बच्चे का ध्यान रखने के लिए मैंने हमारे दो कमरों के बिच का दरवाजा खुला रखा था इसी लिए बच्चा कुछ पलों के लिए जाग उठा पर गहरी नींद में सोये होने कारण वापस फ़ौरन सो भी गया।

सेठी साहब का तगड़ा लण्ड मेरी चूत में दाखिल हो चुका था। मैं उसे भली भाँती मेरी चूत की नाली में महसूस कर रही थी। वह दर्द और उस तगड़े लण्ड की चमड़ी का मेरी चूत में इतनी तगड़ी तरहसे जकड़े होने का अद्भुत मज़े का अनुभव अकल्पनीय और ना भूलने वाला था।

मैंने सेठी साहब को उसी पोजीशन में अपना लण्ड मेरी चूत में जकड़े हुए रखने के लिए कुछ देर के लिए आगे चुदाई करने से रोक दिया। मैं उस पल का पूरी तरह आस्वादन करना चाहती थी। मैं जानती थी की आगे चल कर सेठी साहब मुझे महीनों तक चोदेंगे और मुझे सेठी साहब से कई बार चुदना है। पर यह पहली बार का उस तगड़े लण्ड का मेरी छोटी सी चूतमें जकड़े रहने के एहसास का अवर्णनीय मजे का वह पल मैं पूरा अनुभव करना चाहती थी।

शायद सेठी साहब भी उस आनंद का आस्वादन करना चाह रहे थे या फिर मेरी उस इच्छा का सम्मान करते हुए आगे मुझे चोदने से अपने आपको कुछ समय के लिए रोके हुए थे।

मैंने कुछ समय उस लण्ड की सख्ताई को मेरी चूत में महसूस करने के बाद सेठी साहब को आगे चुदाई जारी रखने का इशारा किया। सेठी साहब से मेरी पहली बार की चुदाई बड़ी दर्दनाक होते हुए भी गजब की आनंद दायक थी। उस मोटे तगड़े लण्ड का मेरी चूत की नाली में रगड़ रगड़ कर अंदर बाहर जाने के मुकाबले में मेरी आजतक मेरे पति के द्वारा हुई चुदाई कुछ भी नहीं थी।

मुझे पहली बार मेरे पति की बारबार कही हुई बात याद आयी की एक शादीशुदा औरत के लिए गैर मर्द के तगड़े लण्ड से चुदाई करवाने का आनंद अद्भुत होता है। मैं मेरे पति की उस बात का उस वक्त कोई तबज्जोह नहीं दे रही थी। पर सेठी साहब से चुदवा कर मुझे मेरे पति की बात का तथ्य समझमें आया।

और यहां तो कोई ऐरागैरा गैर मर्द नहीं, मैं अपने चहिते मर्द सेठी साहब से चुदवा रही थी जो खुद भी गजब के इंसान थे और उनका लण्ड तो कमाल का था ही। तो उस चुदाई का आनंद तो गजब होना ही था।

सेठी साहब की इस पहली चुदाई और मेरे पति के चोदने के तरीके में एक बहुत बड़ा अंतर था। मेरे पति जब शुरू हो जाते थे तो एक तेज दौड़ती हुई रेलवे के स्टीम इंजन के पिस्टन की तरह चोदते ही रहते थे जब तक की वह फारिग नहीं हो जाते।

पर सेठी साहब मुझे भी चुदाई का पूरा मजा दिलाना चाहते थे और खुद भी पूरा लुत्फ़ उठाना चाहते थे। इस लिए पहलीबार लण्ड घुसेड़ कर वह रुके, फिर उन्होंने लण्ड थोड़ा और घुसेड़ा और फिर धीरे धीरे धक्के मार कर अपने लण्ड को जैसे रेलवे का स्टीम इंजन स्टेशन से गाडी छूटने के समय धीरे धीरे अंदर बाहर अंदर बाहर होता है वैसे ही मेरी चूत में अंदर बाहर करते रहे और उसके साथ होते हुए घर्षण का पूरा आनंद वह खुद भी उठा रहे थे और मुझे भी दे रहे थे।

क्या यह उनका मेरे लिए स्पेशल उपहार था मुझे नहीं मालुम, पर चुदाई करते हुए वह कभी सर झुका कर मेरे मम्मों को चूमते तो कभी मुझे मेरी रानी, तुम कितनी टाइट हो, तो कभी मेरे होँठों पर अपने होँठ चिपका कर जैसे वह होँठों को चूस कर मुझे पूरा निगल ही जाएंगे उस आक्रामकता के साथ प्यार किया करते।

इस कार्यकलाप में सेठी साहब का अजगर जैसा लंबा लण्ड मेरी चूत में पूरा का पूरा कब घुस गया मुझे पता ही नहीं चला नाही कोई ख़ास दर्द महसूस हुआ। मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ जब सेठी साहब ने मुझे दिखाया की उनका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसा हुआ है और मुझे महसूस हुआ की वह मेरी बच्चे दानी को ठोकर मार रहा था।

मेरे प्यारे प्रेमी का लण्ड पूरा अंदर ले कर मुझे भी बड़े ही गर्व का अनुभव हुआ। मुझे उस वक्त पता चला की स्त्री के चूत की सुरंग कितनी लचीली हो सकती है की पहली बार तो लण्ड घुसाते हुए काफी दर्द होता है पर धीरे धीरे धीरे जैसे जरुरत पड़ती है, आने आप को फैला कर बड़े से बड़ा लण्ड भी ले लेती है। बल्कि जब बच्चा पैदा होता है तो उसे भी जन्म दे पाती है।

वैसे तो मैं मेरे पति से पचासों बार चुदी गयी हूँ। पर सेठी साहब के साथ का वह पहला अनुभव कुछ अजीब ही था। मैं बिस्तर पर निष्क्रिय लेटी हुई आँखें मूँद कर सेठी साहब के उस महाकाय लण्ड को मेरी चूत की सुरंगों में अंदर बाहर होते हुए जो उन्माद महसूस कर रही थी, कोई भी मर्द उसकी कल्पना तक नहीं कर सकता। अपने प्यारे प्रियतम से चुदवाते हुए और ख़ास कर जब वह अपना अति प्यारा कोई गैर मर्द (पति ना हो कर कोई अतिरिक्त व्यक्ति) हो, तो एक स्त्री कैसा अनुभव कर सकती है वह मैंने उस समय अनुभव किया।

मैं शादीशुदा स्त्रियों से यह जरूर आग्रह करुँगी की अगर कोई स्त्री मेरे जैसी सदभागी हो जिसे सेठी साहब जैसे प्यारे प्रियतम से चुदवाने का मौक़ा मिले तो कम से कम एक बार तो उससे जरूर चुदवाये। यह मौक़ा गंवाने पर हम स्त्रियों को शायद यह ग़म रह जाए की जब मौक़ा मिला था तब चौका नहीं मारा, और सारी जिंदगी मन मसोस कर रहना पड़े। अगर वह प्रियतम कहीं सेठी साहब के जैसा तगड़े लण्ड वाला और तगड़ा चोदने वाला हो तो बात ही क्या।

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