पड़ोसन बनी दुल्हन-27

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मैं तो पहले से ही जानती थी की सेठी साहब मुझे कपडे पहनने नहीं देंगे। इस लिए मैं वैसी ही नंगी बिस्तरे पर बैठी थी। भाभी ने मजबूरी में कुछ शर्माते हुए सबसे नजरें चुराते हुए चाय बनायी और हमें दी। मुझे यह मानना पड़ेगा की भाभी नंगी चलती हुई इतनी खूबसूरत लग रही थी की मुझे भी खुद पर हीनभावना हो रही थी।

भाभी की कमर की लचक, उनके कूल्हे का घुमाव और जाँघों की खूबसूरती देखते ही बनती थी। मर्दों की आँख गड जाए ऐसे भाभी के भरे हुए कूल्हे थे। उन्हें देखते ही हर मर्द उनको सहलाना चाहेगा, कूल्हों के बिच की गाँड़ की दरार में उंगलिया डालकर उँगलियों से गाँड़ मारना चाहेंगे।

वैसे भी वह साडी पहन कर भी चलती थी तो उनके कूल्हे की मटक से मर्द लोग अपनी नजर वहाँ से हटा नहीं पाते थे तो जब कपड़ों का आवरण ना हो तो भला औरत की खूबसूरती का क्या कहना? मेरी आँखें भी भाभी की नंगी मूरत देख कर चकाचौंध हो रही थी तो सेठी साहब की तो बात ही क्या? सेठी साहब भी भाभी की नंगी सुंदरता को देख कर अपनी आँखें हरी करने में लगे हुए थे।

चलते फिरते भाभी अपनी जाँघों को चिपका रख कर अपनी खूब सूरत गोरी चूत को हमारी कुरेदती हुई आँखों से दूर रखना चाहती थी। पर ऐसे चला कैसे जाए? भाभी की अजीब ढंग की चाल देख कर मैंने भाभी से कहा, “भाभी सा, अब यह नाटक बंद ही करो और सब से अपनी चूत नाहीं छिपाओ।

यह जवानी यह खूबसूरती चंद दिनों की है, फिर हम सब बदसूरत, बेढंग हो जाएंगे। पुराने जमाने की खूबसूरत हिरोईनों की शकल और बदन आज कौन देखना पसंद करता है? तो चंद दिनों के लिए इसे मत छिपाओ। आपकी चूत इतनी खूबसूरत है तो देखने दो हमें।”

मेरी बात सुन कर भाभी ने मेरी और देखा और हल्कासा मुस्कुरा कर उन्होंने अपनी चूत को छिपाने की कोशिश बंद कर खुल कर चलने लगी।

मैंने भाभी को मेरे पास बुलाया और उनसे लिपट कर बोली, “भाभीजी, मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूँ? मुझे पता ही नहीं था की आप भी हमारे साथ शामिल हो सकते हो। इसी लिए सारी बात आप से छिपाई। आज आप के हमारे साथ शामिल होने से हम बहुत ज्यादा मस्ती कर पा रहे हैं।

आपसे मुझे पहले इतना अपनापन नहीं लगता था। पर अब मुझे आप सिर्फ मेरी भाभी नहीं मेरी एक ऐसी दोस्त जिसके साथ मैं सब कुछ बात कर सकती हूँ। मैं जिसके साथ चुदाई, लण्ड, चूत कुछ भी बिंदास बोल सकती हूँ। रिश्तेदारी में ऐसे रिश्ते कहाँ मिलते हैं।”

भाभी ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा, “ननद सा, मैंने आपकी आँखों में सेठी साहब के लिए वह चुदाई वाला भाव देखा। मैं भाँप गयी की आप के और सेठी साहब के सम्बन्ध काफी करीबी, नाजुक और अंतरंग हैं। मैंने यह भी भाँप लिया की कल रात आप ने सेठी साहब से खूब चुदवाया था।

ननद सा, मैं भी प्यार की भूखी हूँ। मैं सच कह रही हूँ, आप के भाई सा मुझे अच्छा चोदते हैं पर मैं उससे खुश नहीं थी। कॉलेज में मेरा एक ऐसा तगड़ा सॉलिड बॉय फ्रेंड था जो मुझे पागल की तरह चोद कर नानी की याद दिला देता था। मैंने शादी से पहले आपके भाई सा को सब कुछ बता दिया था।

मैंने उन्हें यहां तक भी कह दिया था की अगर उन्हें मौक़ा मिला और अगर वह किसी भी औरत को चोदना चाहें तो चोद सकते हैं और अगर मुझे मौक़ा मिला तो मैं कोई तगड़े मर्द से चुदवाउंगी और आपके भाई सा कोई बुरा नहीं मानेंगे। इस बार सेठी साहब जब आये तो उन्होंने ही मुझे उकसाया था और कहा था की मुझे अगर सेठी साहब से चुदवाने का मौक़ा मिला तो मैं जरूर चुदवाउं।”

भाभी की बात सुन कर मैं चौंक गयी। इसका मतलब था भाई को भी ऐसे चुदाई करने में या करवाने में कोई दिक्क्त नहीं थी। मेरे ही यहां यह सब चल रहा था और मुझे ही कोई खबर नहीं! मैं हैरान सी भाभी का हाथ सेहला रही थी।

भाभी ने मुझे देख कर कहा, “ननद सा, मैं कब से कोई ऐसा मर्द ढूंढ रही थी जो मुझे अपनी मर्दानगी से तगड़ा चोद कर मुझे एक औरत होने का एहसास कराये। मुझे आपकी इर्षा हो रही थी। सेठी साहब जैसे बड़े ही कसरत बाज, हृष्टपुष्ट, हट्टेकट्टे, मांसल एकदम फिट जवान जिन्हें देख कर मैं खुद मोहित हो गयी थी उनसे आपने कल रात ऐसी तगड़ी चुदाई करवाइ यह देख कर मुझसे रहा नहीं गया।

मुझे आपके और सेठी साहब के रिश्ते में कोई भाँज तो नहीं मारनी थी पर आपको यह जरूर एहसास करवाना था की आप लोग मुझे बेवकूफ नहीं बना सकते, मैंने आप लोगों की चोरी पकड़ ली है। पर आपने तो सामने चल कर मुझे सेठी साहब से चुदवाने का मौक़ा देकर मुझे अपने वश में कर लिया। अब हम दोनों एक ही डाल के पंखी हैं।“

दो दिन पहले मैं यह सोच भी नहीं सकती थी की मुझे मेरी मारवाड़ी रूढ़िवादी घराने की भाभी से ऐसे शब्द सुनने को मिल सकते हैं। मैंने भाभी की आँखों में मेरे लिए अनूठा प्रेम देखा और महसूस किया। उस दिन तक मेरे और भाभी के सम्बन्ध ननद और भाभी के ही थे पर उस रात हम एक दूसरे को नंगी कर रहे थे और एक ही मर्द से एक दूसरे के सामने चुदवा रहे थे। खैर भाभी ने मेरे सामने चुदवाया था मैंने नहीं।

भाभी को श्याद इस बात का एहसास हुआ और वह बोल पड़ी, “ननद सा, अब तक आप मेरी चुदाई देखती रही, अब मैं सेठी साहब आपकी चुदाई कैसे करते हैं वह देखना चाहती हूँ। सेठी साहब अब मेरी ननद सा को चोदिये प्लीज।”

मैंने भाभी के गाल में चूँटी भर कर कहा, “आयहाय रे मेरी नटखट भाभी! मेरे ही प्रियतम से चुदवा कर मेरे ही प्रियतम को मुझे चोदने का न्यौता दे रही हो! अरे मैं तो कल सेठी साहब की चुदाई की मार झेल चुकी हूँ। हाँ यह कहो की तुम्हें सेठी साहब मेरी चुदाई कैसे करते हैं यह देखना है। ठीक है तो देखो।”

सेठी साहब मूक दर्शक की तरह चुपचाप बैठे कभी कभी मंद मुस्कुराते हम दो नारियों की प्रेम गोष्ठी सुन रहे थे।

मैंने सेठी साहब की और घूम कर कहा, “सेठी साहब आज आपकी तो चांदी हो गयी। दो खूबसूरत औरतों को एक साथ चोदने का मौक़ा मिल गया। एक को चोद लिया आपने दूसरी चुदवाने के लिए हाजिर है।”

यह कह कर मैं बिस्तर पर लेट गयी और मैंने अपनी बाँहें फैला कर सेठी साहब को आमंत्रित किया। पर सेठी साहब आये उसके पहले मेरी भाभी मेरे ऊपर सवार हो गयी और मेरी आँखों में आँखें डालकर शरारत भरी मुस्कान करती हुई बोली, “ननद सा, अब सिर्फ सेठी साहब नहीं, मैं और सेठी साहब हम दोनों मिलकर आपको चोदेंगे।”

मैं भाभी की बात सुन कर काफी हैरान रह गयी और बोली, “अरे बापरे! एक अकेले सेठी साहब से तो मुश्किल से निपट सकती हूँ, और आप दोनों मिलकर चोदोगे मुझे?” फिर एक गहरी साँस लेकर शरारती अंदाज में कहा, “अरे भाई सेठी साहब तो चलो ठीक है पर आप कैसे चोदोगे मुझे? लण्ड कहाँ से लाओगी?”

भाभी ने मेरी कमर में घूंसा मार कर हँसते हुए कहा, “अरे भाई सेठी साहब का लण्ड तो आप अकेले नहीं हम दोनों के लिए भी ज्यादा ही है। तो फिर लण्ड की जरुरत तो है नहीं। बाकी आपके लिए सेठी साहब के साथ मैं हूँ ना।”

मैंने आँख मटकाते हुए कहा, “भाभी सा, सब सोच रखा है आपने। चलो यह भी ठीक। है अब जब आपके ही घर में चुदाई करवानी है तो यह भी झेलना ही पड़ेगा। मरता क्या ना करता?”

भाभी मेरे स्तनोँ पर अपने होंठ रख कर बोली, “ननद सा, आज मैं और सेठी साहब मिल कर तुम्हारे स्तनोँ में से दूध निकाल कर ही रहेंगे।”

मैंने भाभी के कान पकड़ कर कहा, “भाभी सा, जान लोगे क्या मेरी? अभी कहाँ से दूध आएगा? हाँ अगर तक़दीर ने चाहा और इस बार सेठी साहब से मैं गर्भवती बन गयी, तब जरूर निकलेगा दूध इनमें से। और मैं आप को जरूर वह दूध पिने के लिए बुलाऊंगी।” पर मेरे बोलने के फ़ौरन बाद मुझे पछतावा होने लगा की कैसे मेरे मुंह में से यह शब्द फिसल पड़े? अब भाभी मुझे जरूर पूछेगी बच्चे के बारे में।

मेरी बात सुन कर भाभी थोड़ी पीछे की और हटी। भाभी के चेहरे पर सदमे के से भाव थे। वह हड़बड़ाती हुई बोली, “बच्चा? सेठी साहब से? क्या कह रही हो ननद सा?” तब मेरे लिए बड़ी ही मुश्किल घडी आयी। मैं क्या बताऊँ मेरी भाभी को?

मैं एक बात समझ गयी थी। भाभी बहुत ही तेज औरत थी। वह मेरा झुठ एक सेकंड में भाँप लेगी। मुझे झूठ बोलना आता नहीं। मेरे चेहरे के भाव से कोई भी आसानी से यह भाँप सकता है, और भाभी की नजर तो बड़ी ही कुशाग्र थी। मैंने असहाय हो कर सेठी साहब की और देखा।

सेठी साहब ने फ़ौरन मोर्चा सम्हाला और भाभी को साथ में बिठा कर कहा, “भाभी सा, यह कहानी बड़ी लम्बी है और उसे समझाने में वक्त भी लगेगा और हमारा यह शाम का मजा किरकिरा हो जाएगा। क्या हम फिर बाद में इसके बारे में बात कर सकते हैं?”

भाभी एक समझदार औरत थी और उसे मेरे और सेठी साहब पर काफी भरोसा था। भाभी ने कहा, “ठीक है सेठी साहब, आप और ननद सा कहते हो तो बादमें ही सही, पर मुझे बताना जरूर।”

सेठी साहब ने भाभी के हाथ से हाथ मिला कर बड़ी ही लुभावनी मुस्कान देते हुए कहा, “भाभी यह मेरा पक्का वाला प्रॉमिस रहा की बाद में अथवा टीना मौक़ा और समय मिलने पर मैं यह सारी कहानी विस्तार से तुम्हें सुनाएंगे।“

भाभी ने भी उसी लहजे से मुस्कुराते हुए सेठी साहब से कहा, “ठीक है, जब आप मेरी चुदाई करते हुए मुझे रगड़ रहे थे तब ननद सा बाजू में लेटी बड़े मजे ले रही थी। अब मजे लेने की मेरी बारी है।” फिर भाभी मेरी और घूम कर बोली, “ननद सा अब अपनी रगड़ाई के लिए तैयार हो जाओ।”

फिर भाभी ने सेठी साहब का लण्ड अपनी हथेलियों में लिया और उसे थोड़ा सा ढीला देख कर बोली, “सेठी साहब, यह क्या? मेरी ननद सा को चोदना है और आपका लण्ड अभी पूरी तरह सख्त नहीं हुआ? यह कैसे चलेगा? लाइए मैं इसे सख्त तगड़ा टाइट कर देती हूँ।”

यह कह कर भाभी सेठी साहब को पलंग पर लिटा कर खुद अपना मुंह सेठी साहब के लण्ड के टोपे पर लगा कर उसे बड़े प्यार से चाटने लगी। थोड़ा चाट कर जैसे उसे साफ़ कर रही हो ऐसे कर फिर सेठी साहब के लण्ड को दोनों हथेलियों में पकड़ कर उसे सहलाने और उसकी त्वचा को हथेलियों से ऊपर निचे कर सेठी साहब के लण्ड को अच्छी तरह से पम्पिंग करने लगी।

भाभी कुछ देर लण्ड को सहलाती तो कुछ देर मुंह में डालकर सेठी साहब से अपने मुंह को चुदवाती। सेठी साहब भी अपना पेंडू ऊपर कर के भाभी के मुंह को चोदने की कोशिश करते। भाभी ने तब मुझे पकड़ कर सेठी साहब के अंडकोष को चाटने का इशारा किया।

मैं भी भाभी के साथ सेठी साहब के लण्ड को तो कभी उनके अण्डों को बारी बारी से चाटने लगी। हम दोनों महिलाओं को मिल कर सेठी साहब के लण्ड को चूसना मेरे लिए क अजीब सा रोमांचक कार्य था। सेठी साहब भी हम दोनों की मिली भगत से सेठी साहब के लण्ड को इतनी जबरदस्त ट्रीटमेंट देने से काफी उत्तेजित हो चुके थे और उनका लण्ड लोहे के छड़ की तरह सख्त हो चुका था।

सेठी साहब ने हमें रोक कर कहा, “अरे बस भी करो यार! भाभी क्या तुम अब मेरा माल अपने मुंह में ही छुडवाओगे क्या? तुम्हें पता है की मुझे तो टीना की चूत में मेरे माल को छोड़ना है।”

सेठी साहब ने तब भाभी से सारी बातें छिपाने का स्वांग ना करना ही ठीक समझा और यह बता ही दिया की वह मुझे चोद कर गर्भवती बनाएंगे। भाभी को सेठी साहब की सच बोलने की बात पसंद आयी।

वह फ़ौरन अपना कान पकड़ कर बोली, “सॉरी बाबा, ना, मैं ऐसा पाप नहीं करुँगी। आप मेरी ननद सा को जरूर माँ बनाइये। मुझे मेरे आप दोनों के प्यार से पैदा हुए छोटे से लाले को गोद में बिठाकर खिलाने की बड़ी ही आशा है। लीजिये मैं कबाब में हड्डी ना बन कर हट जाती हूँ।” मैंने भाभी की आवाज में कुछ आहत होने की झलक महसूस की।

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