पड़ोसन बनी दुल्हन-18

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मैंने एक हल्का सा धक्का दे कर मेरे लण्ड को सुषमाकी चूत में घुसेड़ दिया। सुषमाके मुंह से एक हलकी सिसकारी निकल गयी। काफी समय से उपयोग में ना आने के कारण शायद सुषमा की चूत का छिद्र कुछ सकुचा सा गया होगा। मेरे लण्ड ने घुसने के लिए जब जगह बनानी चाही तो कुछ तो दर्द होना ही था। खैर, सुषमा की चूत की सुरंग बड़ी लचीली और रसीली थी। मेरे लण्ड को सुषमाकी चूत की चमड़ी ने जकड के पकड़ लिया।

मैं सुषमा की चुदवाने की तड़प कितनी तगड़ी थी वह सुषमा की चूत के अंदर हो रही फड़कन से ही समझ गया था।

मेरे लण्ड के सुषमा के चूत की सुरंग में घुसते ही सुषमा जैसे थरथर्रा उठी। सुषमा के पुरे बदन में रोमांच की लहर दौड़ रही थी जो मैं उसके चेहरे के भाव पढ़ कर बता सकता था। मेरे लण्ड के पुरे अंदर घसते ही सुषमा ने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया।

मेरे होँठों को अपने होँठों से चिपका कर सुषमा मुझे एक अत्यंत प्रगाढ़ चुम्बन देना चाहती थी। मैंने भी अपने होँठों को सुषमा के होँठों से चिपका कर मैं सुषमा के होंठ और उसकी जीभ को चाटने और चूसने लगा।

मेरी छाती में सुषमा की मदमस्त चूँचियाँ की निप्पलें कोंच रहीं थीं। कुछ देर बाद मैं अपने होँठ सुषमा के स्तनोँ पर रख दिए और उनको एक के बाद एक बारी से चूसने लगा। सुषमा के स्तन भी उत्तेजना से फुले हुए थे और मेरे होँठों में जाते हुए ही उनमें अजीब सी हलचल मैं महसूस करने लगा। स्त्रियों के स्तन स्त्रियों के सम्भोग में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। कहते हैं की अगर आप स्त्रियों के स्तनोँ को दक्षता से सेहलाओ तो स्त्रियां चुदवाने के लिए मजबूर हो जातीं हैं।

मेरा लण्ड सुषमा की सख्त चूत में जकड़ा हुआ था। सुषमाने मेरी कमर और कूल्हे को पीछे से अपने बाहुपाश में इतनी ताकत से खिंच कर अपने बदन से जकड़ा दिया था की उसके कारण मेरा पूरा का पूरा लण्ड सुषमा की चूत में जा घुसा था। मुझे मेरे लण्ड की सतह के ऊपर सुषमा की चूत की सुरंग में हो रही तेज कम्पन महसूस हो रही थी। सुषमा कई बार तगड़े लण्ड से चुद चुकी थी। पर फिर भी मेरे लण्ड से चुदने से सुषमा को इतनी उत्तेजना होगी थी की उसकी चूत में उत्तेजना के मारे ऐसी कम्पन होगी यह मैंने सोचा भी नहीं था।

सुषमा की चुदाई करते हुए मैं मेरी बीबी टीना की चुदाई की उसके साथ तुलना करने लगा। हालांकि मुझसे टीना पहले शुरुआत में काफी उग्रता और उत्तेजना से चुदवाती थी, पर शादी के कुछ सालों बाद वह गर्मजोशी नहीं रही थी। आखिर में तो मुझे उसे गरम करने के लिए सेठी साहब की कोई ना कोई कहानी बनानी पड़ती थी जिससे वह उत्तेजित हो कर चुदाई में रेस्पॉन्ड करती थी।

पर मैंने कभी टीना की चूत में जैसे सुषमा की चूत में स्पंदन हो रहे थे वैसे स्पंदन कभी भी अनुभव नहीं किये। शायद गैर मर्दों से चुदवाते हुए औरतों को कुछ अधिक ही उत्तेजना होती होगी जिसके कारण उनकी चूत में ऐसे स्पंदन हो रहे होंगे। या फिर सुषमा मुझसे चुदवा कर टीना से शायद ज्यादा ही एन्जॉय कर रही होगी।

हो सकता है अगर टीना सेठी साहब से चुदवाने के लिए राजी हो गयी तो टीना भी सेठी साहब से चुदवाते हुए अपनी चूत में ऐसे स्पंदन महसूस कर रही हो। वैसे मुझे यकीन था की जिस तरह से मैंने टीना को बार बार सेठी साहब की बात कर सेठी साहब से चुदवाने के लिए मानसिक रूपसे तैयार किया था, टीना अपने मायके में सेठी साहब से जरूर चुदवायेगी।

मुझे यह भी यकीन था की सेठी साहब टीना पर इतने फ़िदा हो गए थे की वह टीना को चोदे बगैर नहीं छोड़ेंगे। पर फिर भी मुझे चिंता थी की कहीं टीना लाज शर्म की वही घिसी पीटी पुरानी बात कर सेठी साहब का मुड़ ऑफ ना करदे। मैंने तो सुषमा को चोदने का रास्ता बना लिया था पर टीना को भी सेठी साहब से चुदवाना जरुरी था। मैंने तय किया की अगले दिन मैं फ़ोन कर पता करूंगा की रात को सेठी साहब से टीना की चुदाई हुई की नहीं।

मेरा खड़ा हुआ सख्त लण्ड सुषमा की रसीली चूत में अंदर बाहर जाता हुआ कमरे में “पिचक पिचक” की आवाजें पैदा कर रहा था। साथ साथ में मेरे सुषमा को जोरदार धक्के मारने से कई बार सुषमा “ओह….. आह….. ” इत्यादि सिसकारियां निकाल रही थीं।

मुझे मेरे लण्ड में एक अनूठा सुरूर महसूस ह रहा था। सुषमा की चूत टाइट होते हुए भी रसीली और चिकना थी। सुषमा की चूँचियाँ इतनी गोरी और लाल थीं की हाथ लगाने में भी डर लगता था की कहीं हाथ में लाल गुलाबी रंग ना लग जाए। जैसे जैसे मैं चोदते हुए सुषमा को धक्के पेल रहा था, सुषमा का पूरा बदन हिल जाता था और साथ में उसकी गोरी गुलाबी फूली हुई चूँचियाँ पूरी निप्पलों के साथ ऐसे हिलतीं थीं जैसे बारिस के समय हवाके तेज झोंके से पेड़ हिलते हों।

मुझे सुषमा को चोदने का ऐसा बढ़िया मौक़ा मिला था की मैं रुकने वाला नहीं था। सुषमा को चोदते हुए सुषमा का पूरा नंगा इतना खूबसूरत बदन देखते हुए मैं नहीं थक रहा था। सुषमा की गोरी चिट्टी चूत में मेरा तगड़ा चिकना लण्ड अंदर बाहर होते हुए देखने का मजा ही कुछ और था।

कई बार सुषमा अचानक ही सिसकारी लगा कर बोल उठती, “राज चोदो मुझे, फ़क मी, तुम बहुत अच्छा चोद रहे हो।” बगैरह बगैरह। काफी देर तक सुषमा को चोदने के बाद एक बार सुषमा बोल पड़ी, “अच्छा स्टैमिना है राज आपका। मानना पडेगा। आप सेठी साहब से कम नहीं हो। आप सेठी साहब को अच्छी खासी टककर दे सकते हो।” तब मुझे लगा की शायद सुषमा कुछ थकने लगी थी।

सब से ज्यादा उत्तेजना मुझे सुषमाकी उड़ती हुई चूँचियों को देख कर होती थी। जैसे ही मैं सुषमा की चूत में अपना लण्ड पेलता और एक धक्का मारता तब सुषमा की फूली भरी हुई मदमस्त चूँचियाँ फ़ैल कर हवा में उड़ने लगतीं। जो स्तन स्थिर होते हुए इतने भरे हुए सख्त और सुआकार दीखते थे वह धक्के से फ़ैल जाने के कारण एक अजीब सा आकार बनाते हुए वापस वही सख्त गोलाई और भरी हुई स्थिति में वापस आ जाते थे।

चुदाई की उत्तेजना के मारे सुषमा की चूँचियों की निप्पलें फूल कर कोई गुम्बज के शिखर के समान सुषमा के स्तनोँ पर अपना वर्चस्व स्थापित कर डटी हुई दिखती थीं।

उन कभी उड़ते तो कभी ठहरे हुए फुले हुए स्तनोँ को अपने हाथों में लेकर मसलना और निप्पलों को इतना दबाना की सुषमा के मुंह से दबी हुई सिसकारी निकल जाए उसका मजा ही कुछ और था। मैं झुक कर जब भी मौक़ा मिलता सुषमा की कोई एक चूँची की निप्पल को मुंह में ले लेता और जैसे ही दांतों से काटने लगता सुषमा चिल्लाती, “राज दर्द हो रहा है। बस करो।”

पर अब करीब पंद्रह बीस मिनट की चुदाई के बाद सुषमा के चेहरे पर थकान का भाव देख कर मैं थम गया। मुझे भी सर पर पसीना आ रहा था। मैंने झुक कर सुषमा के होँठ से अपने होँठ चिपका कर सुषमा को एक गहरा चुम्बन किया। सुषमा भी मेरे होँठों को चूसती हुई मेरी जीभ को अपने मुंह में ले कर मेरी लार चूस कर निगलने लगी। काफी समय के बाद इतना उत्तेजक और लंबा चुम्बन मैं कर रहा था।

सुषमा ने अपनी बाँहें फैलायीं और मैं सुषमा की बाँहों में सुषमा के बगल में लेट गया। सुषमा पलट कर मेरी आँखों में आँखें डालकर बोली, “कैसा रहा? अच्छा लगा मेरे साथ?”

मैंने सुषमा की नाक से अपनीं नाक रगड़ते हुए कहा, “सुषमाजी, अभी तो पिक्चर बाकी है। मुझे इतना अच्छा लगा की अब सेठी साहब का चांस नहीं लगेगा। मैं तुम्हें छोडूंगा ही नहीं। सेठी साहब को टीना के पास भेज दूंगा। अब तुम आसानी स मुझसे पिंड छुड़ा नहीं पाओगी।”

सुषमा ने भी मुस्कुराते हुए कहा, ” कौन साली पिंड छुड़ाना चाहती है? मैं तो चाहती हूँ की तुम मुझसे ऐसे ही चिपके रहो। सेठी साहब अगर टीना से चिपक कर रहते हैं तो फिर तो हमारी बल्ले बल्ले। पर अगर सेठी साहब नाराज हो गए तो तुम सम्हालना उनको।”

मैंने पट से जवाब दिया, “मैं क्यों सम्हालूं? टीना सम्हालेगी उनको।”

मेरी बात सुन कर टीना मुस्कुरायी और बोली, “अरे वाह रे मेरे टीना के हस्बैंड! एक ही रात में तुम तो बिलकुल पलट गए! पर यह तो पता करो की तुम्हारी बीबी और मेरे पति की सेटिंग हुई भी की नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं की हम यहां बैठे बैठे उनके मिलन के सपने देख रहे हों और वहाँ वह दोनों के बिच कुछ हुआ ही ना हो? वह रात को अपने अपने बेड में सो रहे हों।”

मैंने कहा, “कैसे पता करें? अगर टीना सेठी साहब के साथ है तो इस समय उसे फ़ोन करना ठीक नहीं होगा। कहीं वह भड़क नहीं जाए। हाँ एक काम कर सकता हूँ। मैं सालेजी को फ़ोन कर पूछता हूँ की टीना और सेठी साहब पहुँच तो गये ना ठीकठाक। उनकी बातों से पता चल जाएगा।”

सुषमा ने मेरी बात से सहमति जताई और मैंने मेरे साले साहब को रात के करीब ग्यारह बजे फ़ोन लगाया। कुछ देर घंटी बजने के बाद फ़ोन साले साहब की पत्नी अंजू ने उठाया। सुषमा सुन सके इस लिए मैंने फ़ोन को स्पीकर फ़ोन पर लगाया था।”

फ़ोन के दूसरे छोर से जब अंजू की आवाज सुनी तो मैंने पूछा, “कौन अंजुजी हैं?”

जब साले साहब की बीबी अंजू ने सूना की मैं बोल रहा हूँ तो फ़ौरन बोल पड़ी, “जी जीजा सा। मैं अंजू बोल रही हूँ। आपके साले साहब अभी वाशरूम में हैं। तब तक हम से ही बात कर लो जी! आपने तो हमारी ननद सा को आपके दोस्त के साथ भेज दिया! यह बात समझ में आयी को नी।

पर चिंता करना मति। जैसे की आपने कहा था इस वक्त हमारी ननद सा आपके दोस्त सेठी साहब के साथ ऊपर की मंजिल में सलामत है। मैंने उन दोनों की सलामती और प्राइवेसी का पूरा इंतजाम कर दिया है। मैंने आपके दोस्त के लिए ड्रिंक का तो इन्तिजाम किया ही है पर रात को अगर नींद ना आये और जरुरत पड़े तो ननद सा सेठी साहब को चाय पिला सके उसके लिए सेठी साहब के कमरे में चाय का सामान भी रख दिया है।”

अंजू की बात सुन कर सुषमा की आँखें चौड़ी हो गयीं। वह चौंक कर बोल उठी, “राजजी, आपके साले की बीबी तो कमाल है! बड़ी तीखी नजर और समझ है उसकी! वह तो आपकी चाल को भांप गयी लगती है!”

सुषमा को ध्यान नहीं रहा की फ़ोन को स्पीकर फ़ोन पर लगाने से उसकी हलकी सी आवाज भी अंजू को उस तरफ सुनाई पड़ रही थी।

सुषमा की आवाज सुन कर अंजू बोल पड़ी, “सुषमाजी, नमस्कार! मैं राजजी के साले साहब की पत्नी अंजू बोल रही हूँ। आप और जीजा जी इस समय साथ में है यह जान कर बहुत अच्छा लगा। अब मैं कुछ कुछ समझने लगी हूँ की आखिर यह सब माजरा क्या है। अब तक मैं समझी को नी की जीजा जी ने ननद जी को अकेली आपके पति सेठी साहब के साथ कैसे भेज दिया?

पर आपकी आवाज सुन कर अब सब ठीक समझ में आया। आप और जीजाजी निश्चिन्त रहें की तीन दिन तक ननद सा और सेठी साहब को यहां कोई आंच नहीं आने दूंगी। और वहाँ आप भी हमारे जीजाजी के साथ निश्चिन्त रहें। यह सारी कहानी हम तीनों के बिच में ही रहेगी। जीजाजी को कहना की यहां आपके साले साहब को या किसी और को ज़रा भी भनक नहीं लगने दूंगी की माजरा क्या है।

पर सुषमाजी, एक बात तो माननी पड़ेगी की आपके पति हैं बड़े हैंडसम। ननद सा वाकई खुश हो जाएंगी। और वैसे सुषमाजी, हमारे जीजा जी भी कुछ कम नहीं। आल धी बेस्ट सुषमाजी।”

मैंने फ़ौरन फ़ोन काट दिया। यह तो बड़ी गड़बड़ हो गयी! अंजू ने हमारी सारी प्लानिंग को भाँप लिया था। मरे चेहरे पर चिंता के छाये हुए बादल देख कर सुषमा हँस पड़ी और बोली, “अरे चिंता क्यों कर रहे हो? अंजू ने भले ही आप की प्लांनिंग को भाँप लिया हो पर उसने यह भी कहा ना की वह किसी को इसके बारे कुछ भी बताएगी नहीं।

जब वह सामने चल कर खुल्लमखुल्ला कह रही है तो निश्चिन्त हो जाओ। और फिर अगर मान भी लो की वह सब कुछ बोल देती भी है तो क्या होगा? जब हम चारों राजी तो क्या करेगा क़ाज़ी? अब रंग में भंग मत करो। अभी हमारा काम पूरा नहीं हुआ।”

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