पड़ोसन बनी दुल्हन-17

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मैंने झुक कर सुषमा की चूत को चूमते हुए कहा, “सुषमा तुम्हारी बात बिलकुल सही है। प्यार में सम्मान अन्तर्निहित होता है। सम्मान ख़ास रूप से देने की जरुरत नहीं होती। मुझे तुम्हारी चूत और तुम्हारे स्तन मंडल को खूब चूमना है और प्यार जताना है।”

अनायास ही सुषमा का हाथ मेरे पाजामे के नाड़े पर जा पहुंचा। वह चाहती थी की मैं भी अनावश्यक आवरणों को त्याग कर अपने प्राकृतिक अवस्था में प्रस्तुत होऊं। शायद वह मेरे लण्ड को सहलाना चाह रही थी। मैंने फुर्ती से पाजामे का नाडा खोल कर पजामा और अंदर की निक्कर निकाल फेंकी।

मेरे पाजामे और निक्कर के हटते ही बंधन में जकड़ा हुआ मेरा लण्ड सख्ती से खड़ा हो गया। मेरा लण्ड का साइज शायद सेठी साहब के मुकाबले उन्नीस हो सकता है पर सुषमा के चेहरे से मुझे ऐसा कुछ लगा नहीं। सुषमा ने मेरे लण्ड के आझाद होते ही अपनी हाथों में ले लिया और बड़े ही प्यार से उसे अपने हाथों से सहलाने लगी।

अब माहौल कुछ ज्यादा ही निजी होने लगा था। सुषमा शायद मेरे मन के अंदर चल रही गुथम्गुत्थि को समझने की कोशिश कर रही थी। कुछ देर सुषमा चुप रहीं और आँखे मुंद कर कुछ सोचती रहीं। कुछ देर बाद मेरी और देख कर बोलीं, “राज तुम्हें पता है, मैंने सेठी साहब और टीना को क्यों भेज दिया तुम्हारे ससुराल एक साथ?”

मैंने सुषमाजी की और देखा। उन्होंने कहा, “मैं चाहती हूँ की तुम्हारा और हमारा परिवार एक हो। मतलब सेठी साहब और टीना के सम्बन्ध, सेठी साहब और मेरे बिच में हैं वैसे ही हों। समझे, मैं क्या कह रही हूँ?”

हालांकि मुझे काफी अच्छा आइडिया था की सुषमा क्या कहने जा रहीं थीं, मैं वह बात उनकी जुबानी ही सुनना चाहता था। शायद सुषमा भी यह समझतीं थीं। उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा, “मुझे पता है राज की तुम कई महीनों से मुझे पाने की कोशिश कर रहे थे।

शायद इसी लिए तुमने आगे चल कर टीना से सेठी साहब के संबंधों को काफी करीबी बनाने की कोशिश की और उनको साथ में टीना के मायके भेजा। शायद तुम भी वही चाहते हो जो मैं चाहती हूँ। मुझे तुम बहुत पसंद हो। तुम्हारी हर बात मुझे पसंद है।

राज आज मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़ कर कुबूल करती हूँ की मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनना चाहती हूँ। राज मुझे एक बच्चा देदो। मैं जिंदगी भर तुम्हारी ऋणी रहूंगी।” यह कहते हुए सुषमा ने हाथ जोड़े और मैंने देखा की सुषमा की आँखों में आंसूं भर आये। शायद किसी मर्द से चुदवाने के लिए प्रार्थना करने की आदत नहीं थी उनको। शायद वह मुझ से एक बच्चा पाने के लिए बेबस थी।

मैंने सुषमा का हाथ अपने हाथों में लिया और बोला, “सुषमा, ऐसा मत कहो। मैं भी चाहता हूँ की तुम्हें बच्चा हो और तुम्हारी और सेठी साहब की जिंदगी में फिर से वही रौनक आये। मुझे टीना ने आपके और सेठी साहब के दर्द और अंतर्द्वंद के बारे में बताया था।

अब हमारे बिच औपचारिकता की जूठी दिवार या पर्दा नहीं है। हम एक दूसरे से बेझिझक अपने मन की बात कह सकते हैं। अगर मेरे वीर्य से आपका अंकुर फलीभूत हुआ तो यह मेरा सौभाग्य होगा। सुषमा मैं सिर्फ आपकी बाँहों में नहीं आपके मन में समा जाना चाहता हूँ।

हालांकि आप सेठी साहब की पत्नी हो, मैंने आपके तन और मन दोनों पाने की उम्मीद सेठी साहब के साथ और उनके विश्वास के कारण ही रखी। मैं आपको यह विश्वास दिलाना चाहता हूँ की आप और सेठी साहब के जीवन में एक दूसरे के लिए हमेशा प्यार बना रहे इस लिए मैं सदासर्वदा प्रयत्नशील रहूँगा। पर तुम हमेशा मेरी तन और मन से पत्नी भी रहोगी। हमारा मिलन सिर्फ बच्चे के लिए नहीं होगा।”

सुषमा मेरी बाँहों में से निकलती हुई बोली, “राजजी अब ना तो तुम और टीना हमें छोड़ कर कहीं जा सकते हो और ना ही हम कहीं जाना चाहेंगे। अगर जाना भी पड़ा तो भी हमारे सम्बन्ध कम मजबूत नहीं होंगे क्यूंकि हमारी जान मतलब हमारे बच्चे एक दूसरे के पास होंगे।”

मैंने कहा, “सुषमा, अब हम एक होने वाले हैं। हमारा यह मिलन यादगार होना चाहिए।”

सुषमा ने मेरी बाँहों में मचलते हुए जवाब दिया, “हाँ, मैं चाहती हूँ की हमारा प्यार भरा मिलन प्यार भरे संगीत के वातावरण में ही होना चाहिए। सेठी साहब के साथ मेरा मिलन हमेशा तूफानी अंदाज में ही होता है। उनके साथ सिर्फ बदन की भूख प्यार के साथ मुकाबला करती है। पर आज मैं बदन की भूख को प्यार से संगीतमय माहौल में बुझाना चाहती हूँ।”

यह कह कर सुषमा बिस्तरे से उठ खड़ी हुईं और अपने म्यूजिक सिस्टम की और जाने लगी। नंगी सुषमा को कमरे में चलते हुए देख मेरा पूरा बदन रोमांच से भर गया। नंगी चलती हुई सुषमा के कूल्हों की लचक देखना किसी भी मर्द को पागल करने के लिए काफी था। सुषमा की गाँड़ का रंग और उभार इतना ज्यादा मादक था की मैंने सुषमा को पास बुलाया और बुला कर सुषमाकी गुलाबी गोरी गाँड़ पर हाथ फिराते हुए उन्हें कभी बड़े प्यार से सहलाया तो कभी दो तीन चपेट मार कर और भी लाल किया।

चलते चलते सुषमा के स्तनोँ का उछलना किसी बिजली के गिरने से कम चमत्कारिक नहीं था। कुछ देर बाद जब मैं सुषमा की गाँड़ से फारिग हुआ तो सुषमा ने उनके चहिते सितार वादक की एक प्यार भरी धुन अपने म्यूजिक सिस्टम पर बजानी शुरू की और शुरू होते ही वापस लपक कर वह मेरी बाँहों में आ गयी।

सोचिये उस समय मेरी हालत कैसी रही होगी। मेरी प्यारी सुषमा को मेरी बाँहों में पाकर मेरे लिए अब अपने आप पर नियत्रण रखना बड़ा ही कठिन था। मैंने सुषमा की चूत में फिर से दो उंगलियां डाली और मैं बड़े ही प्यार से सुषमा की चूत में से उन उँगलियों को अंदर बाहर कर सुषमा को तैयार करने की कोशिश में लगा था।

सुषमा तो तैयार ही थी। शायद उसे भी महीनों से मेरे लण्ड की उम्मीद थी। एक तरफ म्यूजिक सिस्टम पर सितार वादन की लय और तबले की थाप माहौल को संगीतमय बना रही थी तो दूसरी तरफ मैं सुषमा की चूत को मेरी उँगलियों से चोदते हुए उसे चुदवाने के लिए तैयार कर रहा था। संगीत की मधुरता के साथ मेरी उँगलियों की चुदाई से सुषमा भी पलंग पर मचल मचल कर चुदाई के लिए तैयार होने के संकेत दे रही थी।

पर संगीतमय चुदाई के साथ साथ जीवन की एक ठोस सच्चाई भी मुझे नजर आ रही थी। शायद सुषमा और सेठी साहब ने यह मिलजुल कर फैसला लिया हो की वह दोनों मुझसे और टीना से जातीय सम्बन्ध बनाएंगे और उस संभोग से अगर बच्चे हुए तो हम सब आपस में मिलजुल कर उन्हें सांझा कर लेंगे। इस समझौते में मैं और टीना भी भागिदार थे यह तो मैं पहले पार्ट में बता ही चुका हूँ। सुषमा का बच्चा वह रख लेंगे और टीना का बच्चा हम। इस तरह कोई झगड़ा और मनमुटाव नहीं रहेगा।

मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं थी। वैसे भी मैं और टीना दुसरा बच्चा प्लान कर ही रहे थे। अगर वह मेरे दोस्त सेठी साहब के वीर्य से भी होगा तो क्या हुआ? होगा तो हमारा ही। अगर दोनों बच्चे हो गए तो वह बच्चे हमारी दोनों फॅमिलियों को जोड़ कर रखेंगे। फिर तो सेठी साहब और सुषमा चाहे जहां कहीं भी हों, हमसे अलग नहीं होंगें। मैं चाहता था की टीना और सेठी साहब मिल कर बच्ची पैदा करे। हमारा एक बेटा तो था ही अब बेटी होने से हमारी फॅमिली पूरी हो जायेगी।

मेरी उंगली चोदन से सुषमा काफी उत्तेजित हो चुकी थी। वह बार बार दबी सी आवाज में, “राज, अब बस भी करो, मुझे अपने लण्ड से चोदो। देर मत करो। मुझे तुम्हारी उंगलियां नहीं, तुम्हारा मोटा तगड़ा लण्ड चाहिए।” कह कर अपनी उत्तेजना प्रदर्शित कर रही थी।

तब फिर मैं रुक गया। सुषमा को मैंने बिस्तर पर लिटाया और उसकी मादक टांगें मैंने अपने कंधे पर रखदीं। सुषमा की गुलाबी चूत की पंखुड़ियां एकदम गोरी गोरी सी मेरे लण्ड का इंतजार कर रही हों ऐसे फरफरा रहीं थीं। सुषमा खुद चुदवाने के लिए इतनी बेबस हो रही थी की बार बार वह अपनी चूत की पंखुड़ियों को अपनी ही उँगलियों से सेहला कर अपनी चुदवाने की इच्छा जाहिर कर रही थी।

अक्सर औरतें अपनी चुदवाने की इच्छा तीन तरीकों से जाहिर करती हैं। पहला वह अपने स्तनोँ को निचे से पकड़ कर अपनी हथेली में उठा कर अपनी बेबसता का इजहार करेगी, दुसरा वह अपनी चूत की पंखुड़ियों को सेहला कर अपनी इच्छा जाहिर करेगी और तीसरा तरिका है अपनी उंगलियां मुंह में डाल कर उस पर अपनी लार लिपटाती रहेंगी और आपकी और देख कर हल्का हल्का मुस्कुरा कर अपनी आँखों से इशारा करेगी की वह इच्छुक है।

सुषमा की चूत में से धीरे धीरे उसके स्त्री रस की बूंदें निकलती दिख रहीं थीं। सुषमा शायद मुझसे भी ज्यादा बेबाक थी चुदने के लिए। सुषमा ने मेरे लण्ड को पकड़ा और उसे सहलाते हुए बोली, “राज, मेरा बड़ा मन कर रहा है इसे चूसने के लिए। पर सबसे ज्यादा मेरी चूत फड़फड़ा रही है तुम्हारा लण्ड लेने के लिए। सेठी साहब से हमारी कुछ दिनों से अनबन चल रही थी तो कई दिनों से यह बेचारी भूखी है।”

सुषमा ने फिर मेरा लण्ड अपनी चूत की सतह पर रगड़ा। सुषमा के स्त्री रस और मेरे लण्ड से निकले हुए मेरे पूर्व रस की चिकनाहट के कारण मेरा लण्ड वैसे ही काफी स्निग्ध तो था ही। सुषमा ने मेरे लण्ड को पकड़ कर हिलाकर जगह बनाते हुए अपनी चूत की पंखुड़ियों के बिच घुसेड़ा।

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