पड़ोसन बनी दुल्हन-12

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मैंने सेठी साहब के बालों में उंगलियां फिराते हुए कहा, “कोई बात नहीं सेठी साहब। मुझे पता है। सुषमाजी ने भी मुझे इशारों इशारों में यह बात कही थी। मैं समझ सकती हूँ। आप मेरी सिसकारियां और चीखों की परवाह मत करो। यह दर्द मेरे लिए दुःखद नहीं सुख के अतिरेक के कारण होगा।

सेठी साहब, आपने अपने सच्चे प्यार, लगन और निस्वार्थ भाव से मुझे बिन मोल खरीद लिया है। आज रात से मैं पूरी तरह से आप की बन जाना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ की आप मुझे थोड़ी सी भी परायी ना समझें। मेरा यह बदन आपके भोग और आनंद के लिए पूरी तरह समर्पित है। आज की रात मैं आपसे खूब तगड़ी तरह रगड़वाना चाहती हूँ। आप चाहे जैसे मुझे रगड़ो। मुझे चिल्लाने दो, कराहने दो, पर प्लीज आप सॉरी मत कहो। प्यार में सॉरी और थैंक यू नहीं होते।”

फिर कुछ डरते हुए मैंने कहा, “पर फिर भी सेठी साहब, अब तो मैं आपकी हो चुकी हूँ और हमेशा रहूंगी। तो मेरी सेहत का भी ख़याल जरूर रखना।”

सेठी साहब ने मेरी बात को सूना अनसुना करते हुए अपने होँठ मेरे स्तनोँ के ऊपर चिपका दिए और मेरी निप्पलोँ को वह बेतहाशा जोर से चूसने लगे। उनका मुंह एक स्तन को चूसता तो उनका हाथ मेरे दूसरे स्तन को मसल ने में लगा हुआ रहता।

कई बार वह इतनी ताकत और जोर से चूमते की मुझे लगा की कहीं मेरी छाती से निकल कर मेरे स्तन उनके मुंह में ही ना चले जाएँ। अगर मेरे स्तनोँ में उस समय थोड़ा सा भी दूध होता तो उनके चूसने से फव्वारा बनकर फुट कर निकल पड़ता।

सेठी साहब के मेरे स्तनोँ को इतनी ताकत से चूसने के कारण सेठी साहब के दाँतों के निशान मेरे स्तनोँ पर अच्छी तरह से अंकित हो गए होंगे, उसमें मुझे कोई शक नहीं था। पर सेठी साहब से इस तरह मेरे स्तनोँ को चूसने से मेरे पुरे बदन में जैसे एक झनझनाहट सी होने लगी।

मेरी जाँघों के बिच में से मेरा स्त्री रस चुने लगा, मैं झड़ ने कगार पर पहुंच गयी। मेरा तन बदन मेरे नियत्रण में नहीं रह पा रहा था। मैंने बड़ी मुश्किल से अपने आपको रोका।

यह दर्द मेरे लिए असह्य था। असह्य इस लिए नहीं की मैं उस दर्द को सहन नहीं कर सकती थी, पर असह्य इस लिए था की उस दर्द के कारण मेरी चूत में से पानी का फव्वारा सा छूटने लगा था।

मैं सेठी साहब का वह प्यार पाना चाहती थी जो सुषमाजी को खूब मिल रहा था पर शायद वह उसे बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। मैं सेठी साहब का जीवन आनंद से भर देना चाहती थी। मैं चाहती थी की मुझे मेरे पति से जो प्यार नहीं मिल पा रहा था वह सेठी साहब से मिले और मेरा जीवन सम्पूर्ण हो।

मैंने सेठी साहब के पाजामे का नाडा खिंच कर इशारा किया की अब वह हमारे बीचमें से कपड़ों का आवरण हटा दे। मैं मेरे सेठी साहब को पूरा पाना चाहती थी।

सेठी साहब ने थोड़ा सा हट कर मेरे घाघरे का नाडा खोल दिया। साडी तो वह पहले से ही निकाल चुके थे। मैंने भी मेरे पाँव ऊपर निचे कर मेरा घाघरा निकाल दिया। सेठी साहब ने बिस्तर से निचे उतर कर अपना कुर्ता, पजामा और कच्छा निकाल फेंका। सेठी साहब का बलिष्ठ माँसल नंगा बदन पूरी तरह मेरे सामने प्रस्तुत हो गया।

सेठी साहब का लण्ड उनके बदन की मर्यादा को ना मानते हुए उद्दंड सा लोहे की छड़ की तरह उनकी जाँघों के बिच में खड़ा था। उसे सिर्फ लण्ड कहना शायद बेमानी होगी।

लण्ड मैंने मेरे पति का देखा था। हालांकि मेरे पति का लण्ड भी काफी तगड़ा था, पर सेठी साहब का लंड? किसी भी सेक्स की शौक़ीन औरत के सपनों का बादशाह कह सकते हैं उसे। गोरा, चिकनाहट से भरा, चमकता हुआ, पूरी गोलाई पर नीली नसों के बिछे हुए जाल से आच्छादित ऐसा लगता था जैसे चमड़े का लम्बा, मोटा, चिकना और सख्त रस्सा जिसके एक छोर पर लण्ड का चिकना टोपा था और जिसका दुसरा छोर सेठी साहब की जाँघों के बिच में चिपका दिया गया हो।

हालांकि मैंने सेठी साहब का लण्ड आते हुए कार में अँधेरे में महसूस किया था। पर साक्षात जब उसे खड़ा हुआ देखा तो मुझे कोई ताज्जुब नहीं हुआ की सेठी साहब की पतली कमर, ऊपर का कसरती माँसल पेट, चौड़ी छाती और बाजू के सख्त स्नायु के साथ उस लण्ड इस लण्ड से कई अच्छी सोसाइटियों की खूबसूरत शादीशुदा या कँवारी लडकियां या औरतें सेठी साहब चुदवा चुकीं थीं या चुदवाने के लिए बेताब रहतीं थीं।

ऐसे पुरुष से भला कोई भी स्त्री अपने कौमार्य को भंग करवाने के लिए मजबूर कैसे ना हो? मेरा सेठी साहब से तगड़ी तरह से चुदने का निश्चय सेठी साहब के नंगे बदन और ख़ास कर उनका वह विशाल काय लण्ड को देख और दृढ हो गया। हालांकि मुझे उससे चुदवाने से होने वाले दर्द का भली भांति अंदाज था।

मैंने सेठी साहब का लण्ड मेरी उँगलियाँ में प्यार से सहलाया और झुक कर उसे बार बार चूमा। चूमते हुए सेठी साहब के वीर्य रस का स्वाद मुझे अच्छा लगा। मैं लण्ड चूसना तो दूर, चूमना भी पसंद नहीं करती थी। पर उस रात मुझे सेठी साहब पर इतना प्यार आ रहा था की मैं अपने आपको सेठी साहब का लण्ड चूसने से रोक नहीं पायी।

मैंने सेठी साहब के लण्ड को चूमते हुए धीरे धीरे से पहले उसका टोपा और उसके बाद जितना भी उस महाकाय लण्ड का हिस्सा अपने मुंह में ले सकती थी, उतना लेकर मैं सेठी साहब के लण्ड को चाटने और चूसने लग गयी। मैं तब पहली बार समझ पायी की अपने प्यारे मर्द का तगड़ा लण्ड चाटने और चूसने में कई औरतें कितना ज्यादा एन्जॉय क्यों करतीं हैं।

उस समय मुझे सेठी साहब का लण्ड चूसने में इतना सच्चा आनंद आ रहा था जो कहना मुश्किल है। पर मेरे लण्ड चूसने से सेठी साहब के पुरे बदन का बुरा हाल हो रहा था। उनका पूरा माँसल बदन मेरे उनका लण्ड चूसने से एकदम सख्त हो गया था। उनके मुंह से बारबार “आह… ओह…. हूँ….” की सिकारियाँ निकल रहें थीं।

जितना एक औरत को अपने प्यारे मर्द का लण्ड चूसने में आनंद आता है ऐसा ही आनंद एक मर्द को भी जब अपनी प्यारी औरत उसका लण्ड चुस्ती है तो आता है। उस समय वह औरत का मन अपने प्यारे मर्द का लण्ड उस की चूत के गहराईयों में घुस कर उन गहराइयों को कैसे अपना बनादेगा इसी सोच में खो जाता है।

सेठी साहब ने झुक कर मेरी छोटी सी पैंटी को भी निकलवा दिया और मैं उनके सामने पूरी नंगी हो गयी। सेठी साहब मुझे पूरी तरह निर्वस्त्र कर मेरे नंगे बदन को ऐसे घूरने लगे जैसे उन्होंने कोई स्त्री को नंगी देखा ही ना हो। कुछ देर तक स्तब्ध से देखते रहने के बाद वह बोले, “टीना, भगवान ने तुम्हें बना कर शायद वह ढांचा ही तोड़ दिया। तुम लाजवाब हो।”

मैंने सेठी साहब की बात पर कुछ शर्माते हुए मुस्कुरा कर कहा, “सेठी साहब अब मुझे और परेशान मत करो। अब तो हद ही हो गयी। मुझे पता है, मैं कितनी सुन्दर हूँ। कई बार मैं सुषमाजी को देखती हूँ तो इर्षा से जल उठती हूँ। उपरवाले ने कितना सुन्दर बनाया है उनको। मैं तो उनके मुकाबले कुछ भी नहीं। खैर, चलो अगर मैं सुन्दर हूँ तो अब यह सुंदरता पूरी तरह से आपकी है। मुझे अब आप पूरी तरह से एन्जॉय करो। मैं आपके प्यार के लिए कबसे तरस रही हूँ।”

सेठी साहब ने झुक कर मुझे प्यार से कपाल पर चुम्बन किया फिर मेरी टांगों को चौड़ी कर टांगों के बिच में अपना सर डालकर जीभ से मेरी चूत में से रिसते हुए रस को चाटने लगे। सेठी साहब की जीभ मेरी चूत में गजब कई हलचल मचा रही थी। मेरे पुरे बदन में सेठी साहब के मेरी चूत चाटने के कारण उन्माद की लहर दौड़ रही थी।

मेरी टाँगों के बिच पता नहीं जैसे मेरे स्त्री रस की धारा सी बह रही थी, जिसे सेठी साहेब बड़े चाव से चाटे जा रहे थे। मेरी चूत का हरेक स्नायु छटपटा रहा था। सेठी साहब की जीभ कहाँ कितना कुरेदना उसमें माहिर लग रही थी। मेरी छटपटाहट की परवाह किये बिना सेठी साहब मेरी चूत की हर पंखुड़ी और पंखुड़ियों के बिच की सतह को बड़े प्यार से चाटे और चूसते बाज़ नहीं आ रहे थे। मेरी कामाग्नि की ज्वाला सेठी साहब की जीभ के कुरेदने से बढ़ती ही जा रही थी।

कुछ ही देर के बाद सेठी साहब कुछ पीछे हट गए। पीछे हट कर अपनी जीभ की जगह उन्होंने अपनी दो उंगलियां मेरी चूत में घुसेड़दीं। उँगलियाँ का मेरी चूत में घुसते ही पता नहीं मेरे दिमाग में कैसा झटका लगा की मैं उन्माद और रोमांचित उत्तेजना से कराहने लगी। मेरा झड़ना अब रुका नहीं जा रहा था। मेरा पूरा बदन बिस्तर पर मचल रहा था जिसे सेठी साहब देख कर हैरान लग रहे थे।

मैंने सेठी साहब का हाथ पकड़ कर जोर से दबाते हुए कहा, “सेठी साहब, आह……. ओह…… मुझे चोदो। मैं झड़ रही हूँ। प्लीज अपना तगड़ा लण्ड मेरी चूत में पेलो, अब मुझसे रहा नहीं जा रहा।” ऐसा कहते कहते मैं झड़ पड़ी। मेरे दिमाग में ही नहीं मेरे पुरे बदन में जैसे एक बिजली की तीखा झटका दौड़ रहा था।

मैं जानती थी की जैसे ही सेठी साहब का मोटा लण्ड मेरी चूत में घुसने की कोशिश करेगा तो मेरे पर कहर ढाएगा। पर आखिर मुझे उसे तो लेना ही था तो फिर जब ओखल में सिर रख दिया है तो मुसल से क्या डरना?

मैंने सेठी साहब का सर पकड़ कर उठाया और कहा, “वैसे तो मुझे यह बहुत अच्छा लग रहा है, पर सेठी साहब आज अब मैं आपकी मर्दानगी को पूरा अपने बदन में अंदर लेकर जो सुख एक औरत को अपने प्रेमी से प्यार करके मिलता है, वह मैं महसूस करना चाहती हूँ। इस पल का मैं महीनों से इंतजार करती रही हूँ। अब मुझसे रहा नहीं जाता। अब प्लीज आइये और मुझे खूब प्यार कीजिये और मुझे अपना बना लीजिये। आज की रात मैं मैं ना रहूं और आप आप ना रहो। हम एक दूसरे में खो जाएं। मुझे खूब तगड़ा चोदिये प्लीज।“

सेठी साहब ने मेरी मुंडी पकड़ कर उसे हिलाते हुए कहा, “टीना, मुझे बहुत अच्छा लगा की तुम खुल्लम खुल्ला देसी भाषा में मुझे कह रही हो की तुम मुझ से चुदवाना चाहती हो।”

मैंने सेठी साहब के लण्ड को अपने एक हाथ में पकड़ कर उसे हिलाते हुए कहा, “सेठी साहब, मुझे मजबूर मत करिये। मुझे शर्म आती है। वैसे तो मैं अपने पति से खुल्लमखुल्ला सब बोलती हूँ, पर पता नहीं आपके साथ मुझे आपको मेरा सरगना बनाकर, अपना स्वामी बना कर बहुत अच्छा लगता है।

मेरी नजर में आपका लेवल कहीं ऊंचा है। मैं उसे निचे नहीं लाना चाहती। मैं आपकी औरत बन कर आपके निचे रहना चाहती हूँ। आप कह रहे हैं तो मैं कुबूल करती हूँ की आपकी कसम, आज मैं आपके इस तगड़े लण्ड से खूब चुदना चाहती हूँ। जिस दिन मेरे पतिने आपका यह लण्ड देखा तब से उन्होंने आप के इस लण्ड के बारे में बता बता कर मुझे पागल कर दिया है।

मैं दिन रात इसी के बारे में सोच कर परेशान हो जाती थी की अगर वाकई में आपका यह लण्ड ऐसा तगड़ा है तो उसको मैं अंदर लेकर अंदर में डलवा कर कैसा महसूस करुँगी। जब आपने उस दिन स्कूल में मेरे पति के हक़ की अपेक्षा ना रहते हुए, मेरे पति की जिम्मेदारियां निभाने की इच्छा जाहिर की थी तो मैंने तय किया की मैं आपसे जरूर अपने आप को समर्पण कर मतलब चुदवा कर आपको मेरे प्रेमी और पति होने का पूरा एहसास कराउंगी और अपनी जिम्मेवारी भी निभाऊंगी।

उस दिन से ही मैं आपके लण्ड से चुदने के लिए बेबस हो रही थी। आजकी रात मुझे मौक़ा मिला है। अब अगली तीन रातें आप बिलकुल सोओगे नहीं और यहीं मेरे साथ ही गुजारोगे, और मुझे खूब चोदोगे।”

मेरी बात सुनते ही सेठी साहब ने झुक कर मुझे होंठों पर चूमा और मुस्कुरा कर बोले, “टीना, मैंने कभी सोचा नहीं था की मेरे सपनों की खूब सूरत रानी तुम मुझ पर इतनी जल्दी मेहरबान हो जाओगी। मैं हमेशा तुम्हें अपनी बनाकर मेरे लण्ड से तुम्हें चोदना जरूर चाहता था, पर मैं यह सिर्फ तुम्हारी मर्जी नहीं, बल्कि तुम्हारी सक्रीय इच्छा से ही करना चाहता था। मैंने तय किया था की मैं तुम्हें तब तक नहीं चोदुंगा जब तक तुम मुझे सामने चल कर चोदने के लिए नहीं कहोगी। आज तुमने मेरी यह इच्छा पूरी कर दी।”

यह कह कर सेठी साहब उठ खड़े हुए। उनका तगड़ा लण्ड अल्लड़ सा बेखोफ उद्दंड सा खड़ा हुआ मेरी और ऐसे देख रहा था जैसे मुझे चुनौती दे रहा हो। मैं आश्चर्य से उनको देखती ही रही जब सेठी साहब खिसक कर एक स्टूल पर रखी अपनी सूट केस की पॉकेट टटोलने लगे।

मैं समझ गयी की वह शायद कंडोम ढूंढ रहे थे। यह देख कर मेरे ह्रदय में सेठी साहब के लिए सम्मान बढ़ गया। एक जिम्मेवार प्रेमी की भूमिका सेठी साहब निभा रहे थे। पर मुझे सेठी साहब के तगड़े लण्ड का मेरी चूत में पूरा पूरा मजा लेना था। यह मैंने पहले से ही तय किया था।

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