जहान्वी शर्मा-3

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धनपत ने मेरे निचले होंठ को काटा, और जीभ मेरे मुंह के सामने कर दी, और मैं एक आज्ञाकारी कुत्तिया की तरह अपनी जीभ से उसकी जीभ लिपटा के फिर से मुंह चूसने-चुसवाने लगी।

अब गर्मी मेरे सर चढ़ गई थी। मैंने झट से चुम्बन तोड़ के, नीचे झुक कर, उसका मोटा लंड चूसने लगी। मैंने उसके सुपाड़े को लॉलीपॉप की तरह मुंह में लिया, और वैक्यूम क्लीनर के जैसे चूसने लगी। दोस्तों धनपत का लौड़ा काफी मोटा था, और उसमे बदबू आ रही थी। मगर वो बदबू भी काफी मादक थी। मेरे इस तरह चूसने से धनपत बहुत खुश हुआ। उसने अपना हाथ मेरे सर के पीछे रखा और कहने लगा-

मीणा: कल तो बढ़ा लाज इज्जत का ख्याल था री तुझे, क्या हुआ आज? साली एक दम सौ टके कोठे वाली के जैसे लंड चूस रही है। अब कहा गई रे तेरी लाज-शरम? अब तुझ जैसी दो कौड़ी की औरतों को खूब चोदा है मैंने। तू पहली नहीं है कुतिया। साली तुम सब लंड के नाम से ही झुक के जीभ हिलाने लगती हो। तुम जैसियों के पतियों को कर्ज़ मांगने की क्या जरूरत, कोठे पे बिठाने से ही 1,000 रुपए जेब में होंगे।

ये सब सुन के मैंने उसके लंड के सुपाड़े के ऊपर ज़ोर से जीभ फेरी, और फिर गले तक उसका लंड लेने लगी। गले में पहली बार लेते ही मुझे उल्टी जैसा हुआ, और मैंने तुरंत उसका लंड बाहर निकाल लिया। मगर धनपत 2 सेकंड बाद ही मेरे बाल दोनों हाथों से पकड़ कर मेरा मुंह चोदने लग गया। मैं इतना गहरा ना ले पाने की वजह से खांसने लगी, मगर मुंह में लोड़ा होने से में खांस भी नहीं पाई।

मेरे मुंह से बस गक… गक… गक की आवाज़ आ रही थी। मेरे आंखो से आंसू निकल गए। मैंने विरोध के लिए उसके पैरों को धक्का दिया। मैंने उसके पैर नोच ही दिए थे। उसने फिर मुझे रंडी मादरचोद बोल कर लंड निकाल के कस के थप्पड़ मारा। मगर इसके बाद भी मैं रो नहीं रही थी। मुझे कोई मलाल नहीं हो रहा था।

इसके बाद उसने मेरी ब्रा-चड्डी फ़ाड़ के मुझे नंगा कर दिया और उस मालिश वाली मेज़ पर लिटाया, और मेरी गांड को टेबल के किनारे पर रख के मेरी चूत पर 3 बार थूका। फिर अपने हाथ में थोड़ा सा थूक लेके सुपाड़े पर मसला। मेरी चूत थोड़ी गीली थी, तो उसने वो रस चखा, और फिर सुपाड़ा चूत के मुंह पर सेट किया। फिर बिना रुके लंड मेरी चूत में पेल दिया।

मेरी चूत उसके मोटे लंड के लिए थोड़ी टाइट थी। जिस कारण मेरी चीख निकल गई। उसने लंड बाहर निकाला, और थोड़ा तेल लंड पर, और थोड़ा चूत पर डाला, और मसला, और इस बार वापिस धक्का दिया। इस बार थोड़ी आसानी हुई, मगर मुझे लगा कि मेरी चूत का मुंह फट जाएगा।

दर्द के मारे मैंने अपने होंठ काट लिए, और आंखे मूंद ली। एक दो धक्कों के बाद मेरे मुंह से आह.. आह.. की आनंदमय आहें निकलने लगी। मेरी आहे सुनके धनपत को जोश चढ़ने लगा, और वो किसी चुदाई मशीन के जेसे मेरी कमर पकड़ कर पेलने लगा। वो मेरी एक टांग अपने कंधे पर रख कर बोला-

मीणा: बोल कुतिया कैसा लगा मेरा लंड? साली सड़क की रांड, दो कोड़ी की औरत, बोल तुझे मेरा लंड चाहिए। भीख मांग इसके लिए। बोल के तेरे मरद से अच्छा है मेरा औजार।

ये कहते वक्त उसने लंड बाहर निकाल के चूत के मुंह पे रख दिया, और सुपाड़ा अंदर डाले रखा। एक हाथ से मेरी भग्नासा रगड़ी, और दूसरे से मेरी एक चूची।

मैं भी हवस की पुजारन के जेसे बोली-

मैं: हां सेठ तेरा लंड मेरे मर्द के नुन्नी से बहुत बढ़िया है। इसने बस दो सेकंड में मेरे अंदर की रंडी जगा दी। चोद मुझे सेठ, कोठे के माल के जेसे चोद, मादरचोद।

मेरी ज़बान, बदन, और दिमाग अब उसके लंड के वश में था। ये सुन के धनपत ने जोरदार तेजी से मुझे चोदा, और मेरी चीखें निकाल दी। इसके बाद उसने मुझे सोफे पर घोड़ी बनने को कहा। मैं उसकी हर बात सुन रही थी। उसने फिर मेरी चूत चाट के गीली की, और फिर मेरी गांड पकड़ कर लंड चूत में दे दिया।

अब हम दोनों बिल्कुल कुत्ते की तरह चुदाई कर रहे थे। चुदाई के बीच वो बार-बार मेरे गांड पे थप्पड़ मार रहा था। मैं भी इसमें खूब मज़े लेती। धनपत को भग्नासा का अच्छा ज्ञान था। इस पूरे कार्यक्रम में उसने मुझे दो बार चरम सीमा पर पहुंचा दिया था।

सोफे पर चुदाई के समय उसने मुझे उतर कर घुटनों पर बैठने को कहा, और फिर मेरे मुंह और छाती पर अपना वीर्य छोड़ दिया। फिर उसने मुझे सारा माल चाटने को कहा। मगर उसके कहने के पहले ही मैं मुंह से माल साफ करके चाट रही थी।

मैंने वीर्य पहली बार पिया था। वो काफी गाढ़ा, लिसलिसा और चिपचिपा मगर गरम था। उसका स्वाद कुछ नमकीन मीठा जैसा था। फिर सेठ ने मुझे नहाने के लिए बुलाया, और हमने एक-दूसरे को साफ किया। इतना सब होने के बाद भी मुझे शर्म नहीं आ रही थी। फिर सेठ ने मेरे लिए सेम साड़ी और नया ब्रा-चड्डी का सेट अपनी रिसेप्शनिस्ट से मंगवाया और कहा-

मीणा: मेरे यहां एक सचिव की जगह खाली है, जो मेरा काम और मेरी यात्रा का हिसाब रखे। कल से तू आजाना, सुबह 9 से शाम 6 बजे तक के 25,000 महीना मिलेंगे। उसमें से 10,000 मुझे देते हुए कर्ज़ चुका देना। हां, मगर सचिव का काम बस मेरा हिसाब-किताब नहीं मेरा ख्याल रखने का भी होगा। समझी ना जानेमन?

मैंने इस पर हां में सर हिला दिया। इसके बाद कपड़े पहने और कमरे से बाहर जाने के लिए दरवाजे तक गई। तो सेठ बोला-

मीणा: अरे ओ मेरी पर्सनल असिस्टेंट, तेरा नाम तो बता टेबल पे क्या लिखवाऊं?

मैंने बोला जहान्वी शर्मा, और मुस्कुरा के चल दी घर।

तो दोस्तों कैसी लगी आपको ये कहानी? अगर पसंद आई हो और लंड-धारको का माल और चूत-मलिकाओं का पानी निकला हो तो मुझे

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