पड़ोसन बनी दुल्हन-44

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आगे की कहानी अंजू के शब्दों में:

जब मैं संजू जी से शादी कर नयी नवेली दुल्हन बन कर मेरे ससुराल आयी तब मुझे पता चला की मेरे पति, ननदसा, मेरी सांस, ससुर सबके जीवन में मेरे पति संजयजी के बड़े भाई सुदर्शन भाई साहब (मेरे जेठजी) का कितना बड़ा योगदान था।

मेरे पति संजयजी तो मुझे यहां तक कहते थे की अगर वह अपनी चमड़ी उधेड़ कर उससे जूते बनाकर भाई साहब को पहनाएंगे तो भी वह उनका ऋण चुकता नहीं कर सकते। कई बार संजयजी बड़े भैया की बात करते हुए इतने भावुक हो जाते की उनकी आँखों में आंसू थमने का नाम नहीं लेते।

मेरे घरमें प्रवेश के समय, जब मैं नईनवेली दुल्हन बन कर आयी थी, मेरा घर के आँगन में स्वागत मेरी सांस के साथ साथ माया ने किया था। उसी समय मेरा परिचय माया से हुआ, जो आगे चल कर मेरे लिए मेरी बहन से भी ज्यादा करीबी हो गयी थी। मुझसे माया भी कई बार बड़े भैया के बारे में बड़े चाव से बात करती थी। मैंने महसूस किया की माया कुछ हद तक बड़े भैया से प्यार करने लगी थी।

माया को सुदर्शन भाई साहब से प्यार हो गया है यह सिर्फ मेरा अनुमान था जो मैं माया की सुदर्शन भाई साहब के बारे में प्यार भरी बातों से लगा सकती थी। पुरुष और स्त्री का एक दूसरे को कुछ ज्यादा ही निजी तरीके से पसंद करना शायद प्यार ही कहलाता है।

जब भी माया जेठजी के बारे में बात करती थी तब कई बार वह बहुत ज्यादा भावुक हो जाती थी। ख़ास कर माया जब उसके पति का निधन हो गया उस समय की अपने जीवन की बात करती थी तब उसकी आँखों में पानी झलझलाने लगता था। कैसे जेठजी ने माया को ना सिर्फ अनाथ होने से बचाया, बल्कि उसे घरमें सहारा दिया और एक छोटासा घर दे कर उसको सम्मान की जिंदगी दी।

माया को हमारे घर में काम करने के लिए मेरे जेठजी ने या किसी और ने मजबूर या प्रेरित नहीं किया था। वह स्वयं ही शादी के फ़ौरन बाद अपने पति के कहने पर और पति के निधन के बाद स्वतः ही अपनी जिम्मेवारी समझ कर घरमें आकर बिना किसी के कहे और जेठजी के मना करने पर भी घर के काम में लग जाती थी।

अक्सर माया मुझे यह कहती रहती थी की सुदर्शन भैया ने ना सिर्फ हमारे खानदान को गरीबी और भुखमरी से बचाया था बल्कि उसे भी अनाथ से सनाथ बनाया था। माया के लिए जितना सुदर्शन भैया ने किया था उस ऋण को वह अपना जीवन भी दे कर चुकता नहीं कर सकती।

जिस तरह माया जेठजी के बारे में बात करती थी, मुझे लगा की अगर माया को यह कहा जाए की उसे बिना कोई पारितोषिक के जेठजी के पास जा कर नंगी हो कर जेठजी से चुदवाना है तो मुझे कोई शक या संशय नहीं था की वह ऐसा कर सकती थी।

मैंने महसूस किया की माया अकेली थी और उसको पुरुष के संग की आवश्यकता थी तो जेठजी को स्त्री के सहवास की। मैंने यह भी महसूस किया की जेठजी (सुदर्शन भाई साहब) उस जवानी की उम्र में शायद एक औरत के प्यार की कमी महसूस करते रहते थे।

हालांकि सुदर्शन भाई साहब निति नियम के मामले में बड़े ही सख्त थे और उन्होंने कभी भी मेरे या माया से किसी भी तरह की नजदीकियां बनाने की कोशिश नहीं की। पर मैं एक औरत हूँ और नजर के अंदाज से पुरुषों के मन के भाव भाँप लेती हूँ। मैंने सुदर्शन भाई साहब की नजर में कई बार जवानी की भूख देखि थी।

कई बार जब माया जेठजी के कमरे में साडी और घाघरे का छोर अपनी जाँघों के ऊपर तक चढ़ा कर फर्श पर घुटनें टेढ़े कर झाड़ू लगाने बैठती थी या पोछा करती थी या फिर कुछ साफ़ सफाई करने आगे झुक कर घोड़ी जैसी पोजीशन में होती थी तब माया की जाँघें और उसकी गाँड़ का आकार इतना कामुक और मनमोहक होता था जिसे चोरी से छिप कर टकटकी लगा कर देखते हुए जेठजी को मैंने कई बार देखा था।

कई बार मैंने उन्हें ऐसे मौके पर अपने पयजामा में अपने लण्ड को सहलाते हुए भी देखा था। इस में मुझे कोई शक नहीं था की अगर जेठजी को किसी कमसिन औरत को चोदने का मौक़ा मिले और अगर किसी भी तरह का कोई निति नियम की बाधा बिच में ना आये तो जेठजी जरूर चोदने का ऐसा मौक़ा नहीं छोड़ते।

वैसे भी वह अपनी जवानी की चरम अवस्था में थे और उनका बदन स्वस्थ और तेज तर्रार था। मुझे कोई भी शक नहीं था की जेठजी किसी भी औरत को चुदाई कर पूरी तरह संतुष्ट करने की क्षमता रखते थे। यह सोचते हुए मेरे मन में कई बार माया का ख़याल आता था।

मुझे ऐसा मन ही मन में महसूस होता था की कहीं ना कहीं जेठजी माया के युवा कमसिन बदन पाने की मनोकामना रखते थे, पर उनके सख्त नैतिक और सैद्धांतिक रवैये के कारण वह माया से जान बुझ कर दुरी बनाये रखते थे। अगर जेठजी उन सिद्धांत से ऊपर उठ कर माया को चोदने के लिए राजी हो जाये तो मुझे कोई शक नहीं था की माया भी जेठजी से चुदवाने में पीछे नहीं हटेगी।

इसी के चलते मैंने सोचा की शायद माया और भाई साहब की जोड़ी बन सकती है हालांकि दोनों की उम्र में करीब दस साल का अंतर जरूर था। पर माया को सुदर्शन भाई साहब से प्यार जैसा हो गया था और अगर शादी की बात चलेगी तो मेरा मानना था की माया मना नहीं करेगी। तब मैं माया के और करीब जाकर उसकी राजदार बनने की कोशिश करने लगी।

मैं माया को उकसाती और उसे वक्त बे वक्त काम हो या ना हो; कुछ ना कुछ बहाना बना कर जेठजी के कमरे में भेज देती। ऐसे ही मैंने एक बार जब जेठजी की तबियत ठीक नहीं थी तब कुछ देर रात में माया से जेठजी का हाल पूछने और चाय देने के बहाने जेठजी के कमरे में भेज दिया।

माया को मैंने भेजा उसके दो या तीन मिनटों मैं ही वह दौड़ती हाँफती हुई वापस आ गयी। उसका हाल देखने वाला था। वह काफी घबराई हुई लग रही थी। जब मैंने उसे जेठजी का हाल पूछा तो वह रोनी सी सूरत बना कर कहने लगी, “दीदी मैं क्या बताऊँ? मैंने बड़े भैया को ऐसे कभी नहीं देखा। अरे बापरे उनको ऐसे हाल में देख कर मैं तो डर ही गयी।”

मैंने जब दुबारा माया को झकझोरते हुए पूछ की “क्या हुआ, बताओ तो सही? क्या देखा तूने? तुझे डर क्यों लग रहा है?”

तो वह बोली, “दीदी, मैं नहीं बताउंगी। मुझे शर्म आ रही है।”

मैं माया की बात सुनकर कुछ झुंझलाती हुई बोली, “अरे तुझे डर लग रहा है की शर्म आ रही है? अगर शर्म आ रही है तो मुझसे शर्म किस बात की? बोल क्या देखा तूने?”

जब मैं बार बार माया को बोलने के लिए कहने लगी तब झिझकते हुए तुतलाती हुई माया बोल पड़ी, “बड़े भैया बिस्तरे में पड़े हुए अपने उसको अपने हाथ से हिला रहे थे।”

अब मेरे दिमाग का पारा सातवे आसमान पर चढ़ गया। मैंने माया को हिलाते हुए पूछा, “तू क्या बक रही है? किसको बड़े भैया अपने हाथ से हिला रहे थे?”

माया ने अपनी नजरें नीची कर कहा, “वही जो मर्दों का होता हैं ना दीदी। बड़े भैया अपने उसको अपने हाथ में पकड़ कर हिला रहे थे।’

तब मेरी समझ में आया की जेठजी अपने लण्ड को अपने हाथ में पकड़ कर हिला रहे थे। मेरी शादी के बड़ी देर के बाद मुझे सुदर्शन भाई साहब मतलब जेठजी को औरत के प्यार में घेरने का एक अच्छा मौका नजर आया।

कुछ मुस्कुराते हुए मैंने माया से पूछा, “अरे मूरख, तो तू यूँ कह ना की तूने जेठजी का लण्ड देख लिया। क्या वह अपना लंड हिलाकर मुठ मार रहे थे? अगर ऐसा था तो तू उसके कारण इतनी घबराई हुई क्यों है? क्या तुम्हारे पति को अपना लण्ड हिलाते हुए नहीं देखा तूने? क्या तूने अपने पति का लण्ड अपने हाथों में पकड़ा नहीं?”

मेरी बात सुन कर माया चौंक गयी और कुछ झिझकती हुई बोली, “हाँ देखा तो है। पति का तो हमेशा सहलाना पड़ता था पति को तैयार करने के लिए। कई बार उसे मेरे मुंह से चूसा भी है मैंने।”

मैंने कहा, “यही तो हम स्त्रियों का काम होता है। तो फिर जब तूने जेठजी का लण्ड उनको अपने हाथ से हिलाते हुए देखा तो उसमें शर्म और डर की क्या बात है? कहीं जेठजी ने तुझे देखा तो नहीं ना?”

माया ने अपनी नजरें नीची रख कर कहा, “जी नहीं, बड़े भैया ने मुझे देखा नहीं क्यूंकि जब मैंने बिना आवाज किये उनके कमरे का दरवाजा धीरे से खोला उस समय उनकी आँखें बंद थीं और मैंने जब उनको इस हाल में देखा तो एक पल में ही बिना आवाज किये तुरंत दरवाजा बंद कर फ़ौरन उलटे पाँव भाग कर वापस आ गयी। दीदी एक बात कहूं? आप बुरा तो नहीं मानोगी?”

मैंने माया को मुंडी हिला कर इशारा किया की मैं बुरा नहीं मानूंगी। तब माया ने कहा, “क्या यह शर्म और अफ़सोस की बात नहीं है दीदी, की हम जवान औरतों के घर में रहते हुए बड़े भैया को अपने हाथ से यह सब करना पड़ रहा है। क्या हमें इसके लिए कुछ करना नहीं चाहिए?”

मुझे भी माया की बात में दम लगा। मैंने अपनी मुंडी हिलाते हुए माया से सहमति जताई और कहा, “हाँ तुम्हारी बात तो सही है।”

माया ने अपने भोलेपन में ही सही पर बात बड़ी पते की कही थी। जब माया ने मुझे यह कहानी सुनाई तब मुझे यकीन ही नहीं दृढ विश्वास हो गया की हालांकि जेठजी ने हमारे लिए इतना बड़ा बलिदान दिया था, पर उनके बदन में काम की आग तब भी उतनी ही जल रही थी। अब हमारा कर्तव्य था की उनके बदन की उस काम ज्वाला का शमन करने में हम जो कुछ हम से हो सके हम करें।

माया ने अपनी भोलीभाली जबान में अपने मन की बात कह डाली की हम जवान और खूबसूरत औरतों के घर में होते हुए भी हमारे जेठजी जिन्होंने हमारे सब के लिए इतना सब कुछ किया था उनको अगर मुठ मारनी पड़ती है तो वह हमारे लिए बड़े ही अफ़सोस की बात थी।

तब मैंने तय किया की मैं कोशिश करुँगी की माया और जेठजी की जोड़ी बन जाए। इससे उन दोनोंके बदन की काम की भूख तृप्त हो सकती थी और उन दोनों के जीवन को एक नयी दिशा भी मिल सकती थी।

मैंने माया से कहा, “माया मैं तेरी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। देख तु कहती है ना की मेरे जेठजी ने तुझ पर इतने एहसान किये हैं की तू मेरे जेठजी के लिए अपनी जिंदगी भी दे सकती है? तू अभी अभी यह नहीं कह रही थी की हम जवान औरतों के घर में रहते हुए जेठजी को अगर मुठ मारनी पड़े तो यह हमारे लिए कलंक है?

तो फिर तू एक काम कर। अभी की अभी जेठजी के कमरे में चाय लेकर वापस चली जा और कहना आपकी तबियत देखने आयी थी। फिर टेबल पर चाय रख कर बेझिझक उनके पास बैठ जाना। बोल तू कर सकती है यह?”

माया ने मेरी और देख कर अपने दांतों में ऊँगली दबा कर बोली, “दैया रे दैया! यह क्या कह रहे हो बीबीजी? जब भैया इस हालत में हों तो मैं कमरे में कैसे जाऊं? मुझे बड़े भैयाजी से बड़ा डर लगता है।”

मैंने अपना धीरज ना गँवाते हुए कहा, “देख माया, हमें कैसे भी कर के जेठजी का घर बसाना है। मैं चाहती हूँ की तू मेरे जेठजी से शादी करके जेठजी का घर बसाये। मैं चाहती हूँ की तू मेरी जेठानी बने। क्या तू जेठजी को चाहती है? सच सच बताना।”

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