पड़ोसन बनी दुल्हन-38

Bhabhi Ki Chudai

सुषमा का टॉप और ब्रा हमारे मसलने से वैसे ही इतने अस्तव्यस्त हो गए की सुषमा के स्तनोँ की निप्पलेँ बाहर निकल आयीं। पर बटन नहीं खोलने से वह कभी दर्शन देतीं तो कभी ब्लाउज और ब्रा के अंदर छिप जातीं।

मैंने सुषमा के टॉप को निचे से ऊपर की और खींचने की कोशिश की तब सुषमा ने मेरी जांघों के बिच में हाथ डालकर मुझे इशारा किया की मैं भी अपने कपडे उतार कर मेर लण्ड के दर्शन दूँ। सुषमा का दुसरा हाथ साले साहब की जाँघों के बिच था। हम दोनों को हमारी रानी का बिना कुछ बोले अपने हाथों की हरकतों से आदेश हुआ की हम भी हमारे कपड़ों को उतार कर नंगे हो जाएँ।

हमारे द्वारा सुषमा के ब्लाउज को ऊपर सरका ने पर सुषमा ने अपने हाँथों को ऊपर कर अपना टॉप ऊपर की और खिसका कर निकाल दिया। सुषमा अब सिर्फ ब्रा और छोटी सी पैंटी में थी। तो हमारे साले साहब कौनसे कम थे? उन्होंने भी अपना कुर्ता उतार फेंका।

मैं उनका सपाट पेट, उसके ऊपर पड़े हुए बल और सख्त स्नायु देख कर काफी प्रभावित हुआ तो साफ़ बात है सुषमा तो हमारी उस रातकी शय्या भागिनी थी। वह साले साहब के इस तरह के बदन के प्रदर्शन से प्रभावित क्यों नहीं होगी?

सुषमा ने साले साहब के पेट पर जो बल पड़े थे उन पर हाथ फिरते हुए कहा, “संजू जी भाई वाह मानना पडेगा। आपने आपका शरीर अच्छा खासा फिट रखा है। कोई भी औरत आप पर आसानी से अपना दिल और बदन दे सकती है। यह विधाता का अन्याय है की आप के साथ यह अनुपजाउता या इनफर्टिलिटी का अभिशाप लगा है।”

साले साहब ने सुषमा की और देख कर मुस्कुराते हुए कहा, “सुषमा यह अभिशाप नहीं वरदान है। हाँ यह ठीक है की मेरी स्वयं की पत्नी के लिए यह अभिशाप है, पर मेरी और महिला शैय्या भागिनीओं के लिए तो यह वरदान है।

उनको मुझसे बच्चा होने का कोई डर ही नहीं। वह मुक्त मन से मेरे साथ बिना कंडोम अभिसार मतलब चुदाई कर सकती है। अक्सर मर्दों को और औरतों को भी अगर मर्द कंडोम पहनते हैं तो वह आनंद नहीं आता जो नंगे लण्ड से मिलता है। मुझे भी कंडोम पहन कर चोदने में मजा नहीं आता।

आज आप के साथ भी मेरा जो मिलन होगा वह बिना कंडोम के अवरोध से इसी कारण हो सकता है, क्यों की मैं शतप्रतिशत इनफर्टाइल हूँ। और शायद इसी लिए आपने भी मुझे आपकी शैया का साथीदार बनाने की अनुमति दी है।”

मैं साले साहब की व्याख्या से बड़ा ही प्रभावित हुआ। उनकी बात सच थी। अक्सर यह होता है की जिस मर्द को इनफर्टिलिटी होती है वह इस के कारण बड़े ही मानसिक तनाव में होते हैं। शायद इसकी वजह से उनका लिंग माने लण्ड भी खड़ा नहीं रह पाता। पर मेरे साले साहब को ऐसी कोई समस्या नहीं थी। वह बड़ी आसानी से यह इजहार कर रहे थे की वह इनफर्टाइल थे। और इसी के कारण उनके लण्ड पर इस बात का कोई भी असर नहीं होता था। वह चोदते हुए अपनी महिला साथीदार को चुदाई का आनंद दे सकने में पूरी तरह सक्षम थे। मेरी भाभी का हमेशा मुस्कुराते रहना इसका सुबूत था।

साले साहब की बात सुनकर सुषमा भी काफी खुश हुई। जो मर्द या औरत अपनी कमजोरी को आसानी से स्वीकार कर लेते हैं वह मानसिक तनाव से मुक्त रहते हैं।

सुषमा ने साले साहब की बात सुन कर एक प्रश्न किया, “संजयजी फिर यह बताइये की भाभी जी को बच्चा कैसे हुआ?

इसका मतलब की या तो उन्होंने जो आजकल की नयी तकनीक आई वी ऍफ़ है उसका सहारा लिया या फिर किसी गैर मर्द से चुदवाया। जाहिर है आपने आ वी ऍफ़ का सहारा नहीं लिया। क्यूंकि ऐसा होता तो सबको पता लग जाता। तो फिर भाभीजी को किस गैर मर्द से चुदवाया?

मैं जानती हूँ की किसी गैर मर्द से चुदवाना किसी भी औरत और उसके पति के लिए भी आसान नहीं है। फिर यह कैसे हो पाया?”

सुषमा का प्रश्न सुन कर साले साहब कुछ देर गंभीर हो गए। साले साहब के चेहरे के भाव देख कर मैं भी सकपका गया। फिर हमारी और देख कर हल्का सा मुस्कुराये और फिर बड़े ही शरारती अंदाज में वह बोले, “सुषमा यह एक लम्बी कहानी है। बच्चा पाने के लिए हमें कितने पापड़ बेलने पड़े। हमारी जिंदगी हमारे बच्चे ने बदल डाली। पर वह कुछ भी आज नहीं। फिर कभी मौक़ा मिला तो बताऊंगा।”

मैं मन ही मन मेरे साले साहब को कोसने लगा। मैं जानता था की साधारणतः महिलायें अत्यंत जिज्ञासु होती हैं। ख़ास कर ऐसे मामले में। सुषमा भी कोई कम जिज्ञासु नहीं थी। साले साहब सुषमा को दुबारा चोदने का मौक़ा ढूंढ रहे थे। सुषमा इस कहानी का रहस्य जानने के लिए हो सकता है की साले साहब से दुबारा चुदवाने के लिए राजी हो जाए। शायद यही साले साहब का भी ध्येय था।

सुषमा ने साले साहब की निप्पलों पर हाथ फिराकर एक निप्पल को उंगलियों के बिच ले कर दबाते हुए कहा, “अब बता ही दो ना संजूजी।”

साले साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, “सुषमा, मुझे बताने में कोई एतराज नहीं, पर मैं उस कहानी को बताने में सारी रात बर्बाद नहीं करना चाहता।” हालांकि सुषमा ने आगे फिर इस बात को नहीं छेड़ा पर शायद वह साले साहब से कुछ नाराज जरूर हुई।

मैंने समय की नजाकत को पहचानते हुए अपना कुर्ता निकालते हुए साले साहब से कहा, “ठीक है, आप अभी नहीं बताओगे पर आज सुबह से पहले बताना तो पडेगा। चलो अगर आप अभी अपना राज़ नहीं बताना चाहते हो तो कोई बात नहीं बाद में बताना, पर अभी अपना लण्ड तो निकाल कर दिखा दो साले साहब।”

साले साहब ने मेरी और देखते हुए कहा, “पहले आप।” मैंने सोचा पहले आप के चक्कर में कहीं गाडी ही न छूट जाए, मैंने अपना पतलून भी निकाल फेंका। मुझे देख साले साहब ने भी अपना पतलून निकाल दिया।

अब हम दोनों मर्द अपनी निक्कर में ही थे। हमारे लण्ड हमारी कामुकता भरी हरकतों से उत्तेजित अवस्था में तन कर कसे हुए अपनी निक्करों में बड़ा सा तम्बू बनाये खड़े हुए थे। यह पूरी बातचीत के दरम्यान मैं और साले साहब सुषमा की ब्रा के अंदर अपना हाथ डाल कर सुषमा की चूँचियाँ बराबर मसलते रहते थे।

सुषमा को उसकी टाइट ब्रा में हमारे हाथ घुसने के कारण बड़ी बेचैनी सी हो रही थी। सुषमा ने अपने हाथ पीछे कर अपनी ब्रा के हुक खोल दिए। मैंने सुषमा की ब्रा को एक हाथ में पकड़ा तो सुषमा ने उसको अपने बाजुओं से निकाल कर अपने दूसरे कपड़ों के ढेर के ऊपर फेंक दिया। अब वह ऊपर से टॉपलेस थी।

हमें अब सुषमा की मदमस्त चूँचियाँ जो उस हाल में भी निचे लटकती हुई झूली नहीं थी उन्हें अच्छी तरह से मसलने, चूमने और चूसने की पूरी आजादी मिल गयी थी। सुषमा की चूँचियाँ अपने भराव से और सख्त हुई अपनी निप्पलों और थोड़ी सी श्यामल एरोला की गोलाइयों को कामुकता से दिखाती हुई अल्लड़ और उद्दंड सी तन कर बिना झुके सर उठाकर खड़ी हुई थीं। लेटी हुई सुषमा की उन सख्त चूँचियाँ गजब की कामुक दिख रहीं थीं।

मुझे लगा की मेरी हाजरी में शायद मेरे साले साहब सुषमा से आगे बढ़ने में कुछ कतरा रहे थे। मैंने सोचा उन्हें कुछ मौक़ा देना चाहिए। मैं सुषमा और साले साहब को वाशरूम जाने का बहाना कर वहाँ से उठकर वाशरूम गया। वहाँ टॉयलेट की सीट पर बैठ कर मैंने उन्हें थोड़ा समय दिया।

करीब पांच मिनट के बाद मैं जब वापस बैडरूम में आया तब देखा की दोनों के बदन से कपडे निकल चुके थे। सुषमा पूरी नंगी हमेशा की तरह परी जैसी खूबसूरत लग रही थी। साले साहब सुषमा के ऊपर सवार हो कर उसके होँठों से अपने होँठ कस कर चिपका कर सुषमा के होंठ और मुंह चुम रहे थे।

मेरे सुषमा की दूसरी तरफ अपनी पोजीशन लेते ही सुषमा ने साले साहब से चुम्मा ख़तम किया और सुषमा मेरी और घूम गयी। सुषमा ने मुझे हलके से आँख मार कर कहा, “तुम्हारे साले साहब बडा अच्छा चुम्बन करते हैं। लगता है काफी अनुभव हैं उनको।”

मैंने कहा, “अगर वह फर्टाइल होते तो पता नहीं गाँव में कितनी आबादी और बढ़ जाती।”

सुषमा ने मेरा कच्छा निचे की और खिसकाते हुए कहा, “गाँव को छोडो, अपने घर की आबादी तो बढ़ाओ तुम।” मैंने भी अपना कच्छा निकाल फेंका।

मैंने सुषमा की चूँचियों पर मुंह रख कर उनको चूसते हुए कुछ मुस्कुरा कर कहा, “तुम्हारी चूँचियाँ कह रहीं है की वह काम तो कल ही होगया। देखो अब इनमें दूध भरने की शुरुआत हो चुकी है।”

सुषमा ने अपनी आँखें बंद करते हुए कुछ शरारत भरी मुस्कान देते हुए कहा, “चलो झूठे कहीं के। इनमें इतनी जल्दी थोड़े ही दूध भर जाता है? पर हाँ, हालांकि यह मेरे मन का वहम हो सकता है पर यह तुम्हारी बात मुझे सही लगती है। मेरा दिल यह बार बार कह रहा है जैसे मेरे पेट में तुम्हारा बीज पनपने लगा है।”

सुषमा की एक चूँची मेरे मुंह में थी और दूसरी साले साहब के। साले साहब बड़ी शिद्द्त के साथ सुषमा की चूँची को चूस रहे थे जैसे उनमे दूध आ ही गया हो।

साले साहब के दोनों हाथ सुषमा के गोरे चिकने बदन को ऊपर से नीची तक संवार रहे थे। जब उनका हाथ सुषमा की जाँघों के बिच उसकी चूत पर पहुंचता तो वहीँ थम जाता। वह अपने हाथ की उँगलियों से कुछ देर सुषमा की एक भी बाल से रहित साफ़ चूत की पंखुड़ियों से खेलते और फिर वहाँ से हट कर ऊपर की तरफ सुषमा के बदन के उतार चढ़ाव महसूस करने में खो जाते।

सुषमा एक हाथ से मेरा और दूसरे हाथ से साले साहब का लण्ड पकडे हुए हिलाती रहती थी। सुषमा के लिए एक साथ दो दो मर्द से प्यार पाना एक बड़ा ही रोमांचक अनुभव था। मैंने महसूस किया की सुषमा प्यार की भूखी थी और प्यार पाकर बड़े ही रोमांचक भावावेश में आ जाती थी।

हम दो मर्द उसे इतना प्यार कर रहे थे यह महसूस कर वह बार बार भावावेश में आ कर हमें कहीं भी चूमने लगती थी।

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