पड़ोसन बनी दुल्हन-24

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सेठी साहब डिनर के बाद टहलते हुए आये और मेरे दरवाजे में से अंदर झाँक कर उन्होंने मेरा हाल पूछा। फिर वह अपने कमरे में चले गए। मैं फिर नहाने चली गयी। करीब दस बजे से पहले ही भाभी सब को खाना खिला कर, बच्चों को उनके कमरे में सुलाकर, रसोई, डाइनिंग टेबल बगैरह साफसूफ कर ऊपर आने की सीढ़ी के दरवाजे पर ताला लगा कर एक थैली में कुछ कपडे और एक बक्सा ले कर मेरे पास आयी। मैं तब तक तैयार नहीं हुई थी।

भाभी मेरे पास आ कर बोली, “ननदसा, एक बात कहूं? आप मुझे सेठी साहब के पास मत ले जाओ। मुझे बहुत बुरा लग रहा है। मैं वाकई में कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहती। बल्कि मैं आप को अभी सेठी साहब के लिए ऐसा सजाऊंगी की आपकी सुंदरता में और भी चार चाँद लग जाएंगे।”

मैंने भाभी का हाथ पकड़ कर पूरी आत्मीयता से कहा, “भाभी ऐसा मत कहो। आप कबाब में हड्डी नहीं कबाब में मसाला बन कर आओगी। अब ज्यादा बात मत करो। हम जल्दी तैयार हो जाते हैं। ज्यादा देर ना हो जाए। मियाँ इंतजार कर रहे होंगे। ज्यादा देर हो गयी तो कहीं नाराज ना हो जाएँ।”

भाभी मेरे करीब आयी और मुझे लिपट कर बोली, “ननदसा, मुझे माफ़ कर दो। आप बहुत अच्छी हो। देखिये आज और कल आप दोनों की रंग रैलियां मनाने की रातें हैं। हालांकि मैं जानती हूँ सुंदरता में मेरा आपसे कोई मुकाबला नहीं, पर मैं आउंगी तो हो सकता है सेठी साहब का ध्यान थोड़ा सा बँट जाए और यह आपके ऊपर अन्याय होगा।”

मैंने भाभी को आलिंगन करते हुए कहा, “भाभी आप क्या उलटिपुलटि बातें करती हो। आप सुंदरता में कोई कम नहीं। सेठी साहब खुद आपकी तारीफ़ कर रहे थे।” फिर मैं भाभी के और करीब गयी और उनके कानों में बोली, “भाभी एक गुप्त बात कहूं? आप आओगी उसमें मुझे फायदा है।”

मेर्री बात सुन कर भाभी के कान तेज हो गए। मैंने कहा, “भाभी, सेठी साहब के प्यार की मार मैं अकेली झेल नहीं पाती। मुझे आपके सहारे की जरुरत है। यह जो मेरा हाल हुआ है ना वह एक ही रात का फल है। आप साथ में होंगे तो हम दोनों मिल कर सेठी साहब को झेल लेंगे। प्लीज अब और तर्कवितर्क मत करो।”

भाभी मेरी बात सुन कर मुझसे लिपट पड़ी। भाभी की आँखें भर आयी थीं। वह कुछ भावुक सी हो गयी। मुझसे बोली, “ननदसा, मैंने कुछ नादानियत में आपका मजा किरकिरा कर दिया। सेठी साहब से मैं कुछ आकर्षित हुई थी और स्त्री सुलभ इर्षा में मैंने सब गड़बड़ कर दिया।”

मैंने भाभी की आँखों में से आंसूं पोंछते हुए कहा, “भाभीजी एक स्त्री ही दूसरी स्त्री के भाव समझ सकती है। आपने कुछ भी गड़बड़ नहीं किया। आपने सब ठीक ही किया है। चलो मुझे आप तैयार करने वाली थी ना? तो शुरू हो जाओ।”

भाभी अपना सजावट का बक्सा ले कर आयी थी। अपना बक्सा खोलते हुए भाभी बोली, “पहले मैं आपके बालों को सजाऊंगी फिर आपकी भौंहें, चेहरा और फिर जाँघों और पाँवोँ का सुंदरीकरण करुँगी। आपके स्तन मंडल और आपकी चूत को भी मैं सजाऊंगी। आज आपके प्रियतम आप को बीती कल से कहीं ज्यादा भोगनिय पाएंगे।”

मेरी भाभी ने शहनाज़ हुसैन इंस्टिट्यूट से सुंदरीकरण का अभ्यास किया था और बादमें एक ब्यूटीपार्लर भी कुछ सालों तक चलाया था।

यह कह कर भाभी ने मुझे पकड़ कर आयने के सामने खड़ा कर बोली, “आज मैं आपको आपके प्रियतम के लिए तैयार करना चाहती हूँ। मैं आपके लिए एक ख़ास ड्रेस भी लायी हूँ।”

यह कह कर भाभी ने मेरे लिए लायी ड्रेस निकाली। भाभी की लायी हुई ड्रेस देख कर मैं स्तब्ध रह गयी। वह जाली वाली स्कर्ट जैसी ड्रेस थी। भाभी ने मुझे एक स्टूल पर बैठा दिया और शुरू हो गयी। मैं भाभी की सजावट करने की क्षमता के बारे में भलीभाँति परिचित था।

मुझे तैयार करने में भाभी ने आधे घंटे से ज्यादा नहीं लगाया। उन्होंने मेरे बाल को इतना खूबसूरत तरीके से सजाया की जब मैंने देखा तो मैं खुद आश्चर्यचकित हो गयी। फिर मेरे पुरे बदन पर भाभी ने चन्दन का उबटन लगाया और देखते ही देखते भाभी ने मेरा काया कल्प कर दिया। जब भाभी ने मेरे अल्लड़ स्तनोँ को देखा तो उनकी आँखें चौंधियाँ सी गयीं।

वह उन्हें अपने हाथों में पकड़ कर सहलाते हुए बोली, “ननदसा, क्या बात है! इसी लिए मेरे जीजाजी और सेठी साहब आपके दीवाने हैं। भला ऐसी चूँचियाँ देख कर कौन मर्द पागल नहीं होगा?”

कई बार मुझे नंगी कर मेरे बदन को सजाते हुए भाभी मेरे अंगों को देख कर रुक जाती और बेतहाशा वहाँ चूमने लगती। मैंने भाभी से मजाक में कहा, “भाभी कहीं आप ही मुझे यहीं पर चोदना शुरू मत कर देना।”

भाभी ने मेरी और देख कर कहा, “ननदसा, काश मैं मर्द होती तो आपको छोड़ती नहीं।”

मेरे बदन को सजाने के बाद भाभी ने फटाफट मेरी साडी ब्लाउज, ब्रा निकाल दिए। मैं सिर्फ पैंटी में भाभी के सामने खड़ी हो गयी। मैंने जब भाभी की लायी हुई स्कर्ट पहनी तो शर्म के मारे मैं पानी पानी हो रही थी। भाभी ने मुझे उस ड्रेस के नीच कुछ भी पहनने से मना कर दिया।

हालांकि जाली में सुराख बारीक से थे पर मेरी त्वचा का सारा गोरापन, मेरे बदन का हरेक घुमाव, उभार, खांचा, छिद्र, दरार और सारी बारकियों का अच्छा खासा आभास उस ड्रेस में से हो रहा था। स्कर्ट घुटने से थोड़ा सा ऊपर था जिसे ऊपर उठाने से मेरी गोरी गुलाबी चूत दिख जाती थी।

स्कर्ट का कपड़ा अति महिम जैसे ढाका की मलमल हो। उसमें बिच बिच में छोटे से जगह जगह पर छिद्र। मैंने आयने के सामने जा कर देखा तो मैं खुद अपनी छाया देख कर मोहित हो गयी। सामने ऐसी सेक्सी और अत्यंत खूबसूरत औरत कपडे पहने हुए पर लगभग नंगी खड़ी हो, की सब अंगों की झाँखी हो पर वास्तव में कुछ भी साफ़ ना दिखता हो।

भाभी ने मुझे अश्लील नहीं पर अत्यंत प्रलोभनीय रति समान कामेश्वरी बना दिया था। भाभी ने मेरे बालों की संरचना इतनी बखूबी से की थी की मेरे घने काले बालों को मेरे सर का मुकुट बना दिया था। इसकी तुलना में मेरी भाभी ने कोई ख़ास मेकअप नहीं किया था। मैंने बिलकुल समय ना गँवाते हुए भाभी के सारे पहने हुए कपडे निकाल दिए और भाभी को ब्रा और पैंटी में खड़ी कर दिया।

फिर मैंने भाभी की ब्रा भी निकाल दी और भाभी की चूँचियों को पहली बार देखा। एक बच्चा होने के बावजूद भी भाभी की चूँचियाँ ढीली नहीं पड़ी थीं। मेरे मुकाबले भाभी की चूँचियाँ थोड़ी छोटी थीं। पर भाभी की निप्पलेँ काफी गहरी और लम्बी फूली हुई थीं। भाभी की पैंटी मैंने झुक कर निचे खिसका दी और उनके बदन पर मेरी एक पतली सी साडी लपेट दी।

रात के करीब ग्यारह बजे भाभी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे सेठी साहब के कमरे में ले गयी। किसी देखने वाले को वह सिन देख कर ऐसा ही लगता जैसे किसी नयी नवेली दुल्हन को उसकी भाभी सुहागरात के पलंग पर ले जा रही हो। सेठी साहब उस समय पलंग पर सफ़ेद कुर्ता पाजामें में कामदेव जैसे सुन्दर दिख रहे थे। जैसे ही उन्होंने मुझे देखा तो उनकी शक्ल देख कर मुझे लगा जैसे वह बेहोश होने जा रहे थे। उनके चेहरे से हवाइयां उड़ रहीं थीं। वह कुछ बोलने वाले थे पर उनका मुंह खुला का खुला ही रह गया था।

भाभी ने मुझे सेठी साहब के बाजू में पलंग पर बिठा कर सेठी साहब की और देख कर कहा, “आपकी प्रियतमा को मैंने आपके लिए तैयार किया है उसे स्वीकारिये।” ऐसा कह कर भाभी कमरे से बाहर निकल ने लगी तो मैंने उनका हाथ पकड़ा और कहा, “आप कहाँ जा रही हो भाभी? आपने मुझे भले ही आज की सुहागरात के लिए तैयार किया हो, पर बिना तैयार हुए ही आप मुझसे भी ज्यादा सुन्दर लग रही हो।”

भाभी कुछ आशंका भरी नज़रों से सेठी साहब की और देखने लगी। मैंने भाभी को खिंच कर सेठी साहब के दूसरी तरफ बिठा दिया और कहा, “भाभीसाहेब, सुनो पहली बात, मैं और सेठी साहब हम दोनों आपको पसंद करते हैं। मैं चाहती हूँ की आप भी आज रात हमारी मस्ती में हमारे साथ शामिल हों। इससे हमारा आनंद आधा नहीं दुगुना हो जाएगा। और दूसरी बात आज रात आप देखेंगे की सेठी साहब एक साथ हम दोनों को खुश करने की क्षमता रखते हैं। सिर्फ मेरे रहने से सेठी साहब को पूरा मजा नहीं आता। आप शामिल होगी तो सेठी साहब भी सेटिस्फाई होंगे और हम को भी सैटिस्फाई करेंगे।”

भाभी ने सेठी साहब की और शायद उनकी रजा मंदी के लिए देखा। सेठी साहब ने मुझे अपनी बाँहों में भरकर बोला, “भाभी साहब, टीना जो कहती है डंके की चोट पर कहती है। मैं तो तुम्हारी ननदसा का ग़ुलाम हूँ। वह बड़ी मीठी मीठी बातें करती है। पर उसकी इच्छा मेरे लिए आज्ञा है।

मैं एक ही बात कहूंगा, मुझे टीना की पसंद पसंद है।” यह कह कर सेठी साहब ने अपनी दूसरी बाँह लम्बी कर भाभी को भी अपने सीने से लगा लिया। सेठी साहब की चौड़ी छाती पर लगभग उनकी गोद में बैठे हुए मेरी और भाभी की नाक एक दूसरे से टकराये इतनी करीब हो गयी। मैंने भाभी के चेहरे को प्यार से सहलाते हुए उसे अपनी हथेलियों में भरते हुए कहा, “भाभी, आप के लिए और मेरे लिए भी आज का अनुभव एक अद्भुत अनुभव है। हमने कभी अपने प्यार को बाँटा नहीं। पर कहते हैं ना की बाँटने से सूख बढ़ता है और दुःख कम होता है। तो चलो आज हम अपना सुख बाँटते हैं।”

भाभी मेरी बात सुन कर कुछ तनाव मुक्त होती हुई बोली, “सच कहूं? सेठी साहब को देखते ही पता नहीं कैसे उन्होंने मेरे अंदर कुछ अजीब सा घमासान मचा दिया था?”

मैंने भाभी की टाँग खींचते हुए कहा, “अंदर माने कहाँ? दिलमें, या जाँघों के बिच में?”

भाभी ने कुछ शर्माते हुए कहा, “ननदसा, अब मेरा मजाक मत उड़ाओ। आपको तो पता है की औरतों को कहाँ कहाँ घमासान मचता है जब वह कोई तगड़े मन पसंद आदमी को उन निगाहों से देखती है। सारी जगह घमासान मचा दिया था तुम्हारे सेठी साहब ने।”

मैंने भाभी की ठुड्डी पकड़ कर उसे हिलाते हुए कहा “ओयहोय! क्या बात है? बदन में सब जगह ही घमासान मचा दिया क्या हमारे सेठी साहब ने? देखो सेठी साहब अब सिर्फ मेरे नहीं, तुम्हारे भी हैं। अब वह हमारे सेठी साहब हैं।

फिर मैंने सेठी साहब का कुर्ता निकालने का प्रयास करते हुए कहा, “सेठी साहब का सीना काफी चौड़ा है। उस पर हम दोनों के लिये काफी जगह है।” सेठी साहब ने अपने हाथ ऊपर उठाते हुए मुझे अपना कुर्ता निकालने दिया।

मैंने सेठी साहब के सीने को सहलाते हुए भाभी का हाथ पकड़ कर मैंने सेठी साहब की निप्पलों पर रखते हुए कहा, “देखो यह होता है मर्द का सीना। एक दिन सेठी साहब बाहर पार्क में अपना कुर्ता निकाल कर कसरत कर रहे थे। इसी सीने को देख कर ही मैं पानी पानी हो गयी थी।”

मैं खड़ी थी तो सेठी साहब मुझे देख कर बोले, “टीना मैंने तुझे बगैर कपड़ों में देखा है, पर इस भेष में तो तुम और उससे भी ज्यादा सेक्सी लग रही हो। मैंने भाभी की और इशारा कर के कहा, “यह सब भाभी का कमाल है। यह ड्रेस भी भाभी का है और मुझे आपके लिए तैयार भी भाभी ने किया है।”

सेठी साहब ने भाभी की और मूड कर कहा, “मुझसे टीना ने आपके बारे में बात की थी। मैंने आपको जब पहली बार देखा तब ही से मैं आपसे काफी प्रभावित हूँ। पर शामको जब टीना ने कहा की आप भी हमारे साथ हमारी मस्ती में ज्वाइन करोगी तब मेरी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। मैं मानता हूँ की ख़ुशी बाँट ने से बढ़ती है।”

भाभी ने सेठी साहब की छाती पर सर रख कर कहा, “भाभी बड़ा ही आग्रह कर मुझे ले आयी।” अचानक भाभी ने सोचा की उनकी बात का मतलब यह भी निकाला जा सकता है की वह मजबूरी में वहाँ आयी थी तो भाभी ने अपनी बात को समझाते हुए कहा, “नहीं सेठी साहब मेरे कहने का मतलब है की यहां आयी तो मैं अपनी मर्जी से ही हूँ।”

मेरी भाभी मुझसे उम्र में दो साल छोटी थी। भाभी का नाक नक्श काफी सुकोमल था। मुझसे थोड़ी ऊंचाई कम थी पर बदन में पूरी तरह से भरी हुई थी। घरमें काफी काम करते रहने के कारण भाभी ने अपना वजन बढ़ने नहीं दिया। एक बच्चा होने के बावजूद भी वह बहुत सेक्सी लगती थी।

भाभी की पतली कमर बड़े कूल्हे और सख्त भरी हुई चूँचियाँ भाभी के रूप में चारचाँद लगा देती थी। भाभी अपनी साडी की गाँठ कमर से नजर ललचाने वाली निचाई पर बांधती थी। मेरी भाभी की सास और मेरी माँ ने कई बार उसे टोका भी था। पर मेरे पापा यांनी भाभी के ससुर को कोई शिकायत नहीं थी। वह सास को कहते, “अरे छोड़, यह नए जमाने की बहु है। इसे पहनने दे जैसे पहनना चाहे। अब वह पुराना ज़माना चला गया।” मुझे लगता था की मेरे पापा भी मेरी भाभी की खूबसूरती के कायल थे।

मेरे प्रोत्साहन से भाभी कुछ कुछ तनाव मुक्त लग रही थी। सेठी साहब की निप्पलों को अपनी उँगलियों में पिचकाती हुई भाभी बोली, “वाकई सेठी साहब का बदन मजबूत, सख्त और तना हुआ है, इसमें कोई दो राय नहीं।”

सेठी साहब ने भाभी के बालों में उंगलियां फिराते हुए कहा, “मैं तो तुम्हें अंजू ही कहूंगा। तुम्हारा नाम इतना प्यारा है। तुम भी मुझे आप कहना बंद करो। मुझे अच्छा नहीं लगता। ऐसा लगता है जैसे मैं तुम्हारा स्कूल टीचर हूँ। तुमने जिस तरह से मेरी आवभगत की और पहली नजर में जिस तरह से तुमने मुझे देखा, मैंने तुम्हारी आँखों में एक अजीब सा भाव देखा। तब से मुझे तुम्हारी और एक आकर्षण का आभास हुआ था। जब तुम्हारी ननदसा ने मुझे पूछा की क्या वह तुम्हें भी रात को बुलाले, तब मैं सच में खुश हुआ था।”

मैंने देखा की मेरी भाभी कुछ करने से हिचकिचा रही थी, तब मैंने भाभी को उठाया और उनके होंठ सेठी साहब के होंठों के एकदम करीब ला कर कहा, “मैं इतना ही कर सकती हूँ। चूमना तो आप दोनों ने है।”

मेरी बात सुनते ही सेठी साहब ने भाभी का सर अपनी हथेलियों में पकड़ लिया और वह अंजू को बेतहाशा चुम्बन करने लगे। मैं दोनों को चुमते हुए देख कर बड़े ही संतोष का अनुभव कर रही थी। उन दोनोंका चुम्बन काफी लंबा चला। उस दरम्यान सेठी साहब जैसे अंजू भाभी की साड़ी लार अआप ही पिने लगे थे। काफी देर तक सेठी साहब की बाँहों में रहने के बाद भाभी जब फारिग हुई तो मुड़कर गहरी सांस लेते हुए मुझे जैसे उन्होंने कोई गुनाह किया हो ऐसे देखने लगी।

मुझे देखती हुई बोली, “सेठी साहब ने मेरे होंठ पर अपने होंठ ऐसे भींच दिए थे की मुझे लगा की अब मेरी साँसे उनकी साँसों के साथ ही चल रही हैं। बापरे सेठी साहब ऐसा जबरदस्त चुम्मा तो मेरे पति ने भी मुझे आजतक नहीं किया।”

मैंने झुक कर भाभी को अपने करीब खींचा और उनके ब्लाउज के बटन खोलने शुरू किये। मैंने कहा, भाभीजी अब हमें अपने रूप के दर्शन कराओ जी।”

भाभी ने भी मेरी मदद करते हुए खुदके ब्लाउज के बटन पहले खोले और फिर अपनी ब्रा को भी खोल कर दोनों को कमरे के कोने में निकाल फेंका।

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